GUDDU MUNERI

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चायपत्ती


[ चायपत्ती ] 


न जाने किस वक्त मेरा जन्म हुआ 

कुदरत का बनाया हुआ करिश्मा थी


हरी भरी घास पौधे के बीच रहती 

मैं तो एक पौधे की सुंदर पत्ती थी ।।


मेरे जैसी और भी पत्तियां थी 

मैं उस परिवार का एक हिस्सा थी 


जहां भी उगती मैं खुशबू बिखेरती 

पहचान खुशबुओं की हसती थी  ।। 


न जाने कैसे व्यापार फरोख्त हुई 

मैं जंगल में हवाओ संग सुहानी थी 


उखाड़ लिया मुझे मेरे आशियाने से 

मैं बेहतरीन आशियाने की रानी थी  ।।


मुझे कूट काट कर पहले जख्म दिए 

मैं सहन करने वाली मजबूत पत्ती थी 


नए नए मरहम लगा मुझे तैयार किया 

मैं एक नए नाम वाली चायपत्ती थी ।।


लूट गया मेरा जीवन समर्पित जंगल में

मैं फिर से उगाने को, खेत की हरियाली थी 


रंग रूप बदला मिट गया इतिहास मेरा 

मैं तो बस अब चायपत्ती हरियाली थी ।।


     - गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी 

     - दिनांक : ०४/०२/२०२४

विषय : स्वेच्छिक


आज की प्रतियोगिता हेतु 






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4 Comments

नंदिता राय

12-Feb-2024 05:40 PM

Nice

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Mohammed urooj khan

06-Feb-2024 12:46 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Ajay Tiwari

05-Feb-2024 09:31 AM

Nice👍

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