सखी आए नाही साजन
भोजपुरी कविता _ सखी आए नाही साजन।
जाड़ गइल अब आइल बसंत हिय पीर उठे सखी आए नाही साजन।
सजल धरती हरी घास उगल परती खिले कचनार सुने ना मनुहार अभागन।
बहे पुरवी बयार कुहुके कोइली घोली रसधार लगे मन के बड़ भावन।
जोहत पिय राह थके नीर ना नैन रुके मोहे याद बड़ी आवत राजन ।
तन उमंग भईल ताल तलैया तरंग भईल तन में नस नस लगे आगन।
पियर सरसो फूल खिलल गेहूं बाली मस्त डोलल पिय बिना सुना फागन ।
महुआ कोच धरे आम मोज फरे बसंत रस मदन झरे बिरहिनी लगे डासन।
पांव जमीन ना ठहरे पिय बिन यौवन भहरे नैन नशा तन ले अंगड़ाई प्रीत रागन।
श्याम कुंवर भारती ( राजभर)
बोकारो,झारखंड
Gunjan Kamal
07-Feb-2024 06:25 PM
👏👌
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Mohammed urooj khan
06-Feb-2024 02:34 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Punam verma
06-Feb-2024 09:44 AM
Nice👍
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