गरीबी

   गरीबी


एक दिन एक बच्ची दिखी,
भीगते हुए गुब्बारे बेच रही थी!
फटा पुराना कपड़ा नंगे पांव,
रोटी की आसरा देख रही थी!

मैने सोचा बारिश में भीग रही,
इसकी इतनी भी क्या लाचारी हैं?
जब पास बुलाया और पूछा?
पता चला समस्या अत्यंत भारी हैं!

इस कलियुग का कुचक्र तो देखिए,
पिता को जेल में डाल दिया!
खेत खरिहान घर सब अपने नाम करा,
परिजनों ने धक्का मार निकाल दिया!

प्रभू आपकी लीला भी बड़ी न्यारी हैं,
कर्ज़ में डूबी बेचारी हालत की मारी हैं!
लोगों की टेढ़ी नज़रे गिद्धों सा लगी रहती,
माँ जमीन पर लेटी उसे दिल की बिमारी हैं!

किस्मत रुठ चुकी न राशन हैं न डेरा हैं,
शाम हुआ तो फुटपाथ बसेरा हैं!
खुशियां रौनक अब वे दुर से ही निहारते हैं,
गरीबी बला ही ऐसी यहां लोग रोज़ हारते हैं!

      स्वरचित मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित..
              ✍🏾 चंद्रगुप्त नाथ तिवारी
      सुंदरपुर बरजा, आरा (भोजपुर) बिहार


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7 Comments

Mohammed urooj khan

12-Feb-2024 02:19 PM

👌🏾

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Gunjan Kamal

10-Feb-2024 11:35 PM

👏👌

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खूबसूरत और बेहतरीन शब्द संयोजन,,,, repeat किया है आपने रचना,,,, 5 February को भी डाली थी

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