रसोई से स्कूल तक (कहानी) प्रतियोगिता हेतु-11-Feb-2024
दिनांक 11.० 2. 2024 दिवस- रविवार प्रदत्त विषय-रसोई से स्कूल तक प्रतियोगिता हेतु
पाठ परिचय-इस कहानी में यह बताया गया है कि किस प्रकार नाजिया की ज़िंदगी एक रसोई से शुरू होकर स्कूल तक पहुंँचकर समाप्त नहीं होती है वरन् यह रसोई ही दुनिया में उसे अपनी पहचान दिलाती है। तथा अनेकानेक बच्चों के जीवन को संँवारने का शुभ अवसर प्रदान करती है।
छत्तीसगढ़ जिले की सरवपुर गांँव में रहने वाली नाजिया की मम्मी बचपन में ही उसे छोड़कर अल्लाह को प्यारी हो गई थीं। नाजिया की परवरिश उसके दादा-दादी, ताई आदि परिवार के अन्य सदस्यों ने मिलकर किया। यद्यपि कि नाजिया को सारे लोग बहुत प्यार करते थे। किंतु सबकी यही सोच थी कि बिना माँ की बच्ची है, अगर इसे घर- गृहस्थी का काम नहीं आएगा तो बड़े होने पर शादी- ब्याह में बड़ी दिक्कत आएगी। अतः उससे 9 -10 साल की उम्र से ही रसोई का काम करवाया जाने लगा। बचपन से ही वह बड़ी समझदार थी। वह यह भली भांँति समझती थी कि उससे ऐसा क्यों करवाया जा रहा है। अतः बिना किसी भी विद्रोह और आक्रोश के रसोई के काम पूर्णतया कर्तव्य निष्ठा और ज़िम्मेदारी से करती थी। सुबह वह रसोई की तैयारी करके विद्यालय चली जाती थी उसके जाने के पश्चात खाना बनाने का काम घर की औरतें करती थी। किंतु जब वह शाम को विद्यालय से घर आती थी तब पढ़ाई-लिखाई करके शाम का पूरा रसोई का काम अकेले संँभालती। समय बीतता रहा। देखते-देखते नाजिया 15 वर्ष की हो गई वह जिस तरह से घर के कामों में दक्ष थी उसी तरह विद्यालय के कामों में भी अव्वल दर्जे की थी। चाहे बात पढ़ाई की हो, खेलकूद की हो, रचनात्मकता की हो, क्रियाशीलता की हो हर क्षेत्र में नाजिया प्रथम दर्जे की छात्रा थी। विद्यालय में सब लोग उसको बहुत प्यार करते थे। कुछ समय पश्चात उसके विद्यालय में कक्षा ग्यारहवीं में कौशल विषय के अंतर्गत पाक कला को भी शामिल किया गया। नाजिया तो पहले से ही पाक कला में दक्ष थी।अतः उसने कौशल विषय में कक्षा 11वीं में अन्य विषयों के साथ पाक कला भी लिया। जिसमें उसका प्रदर्शन सदैव उत्कृष्ट श्रेणी का रहा। उसके पश्चात स्नातक में उसने गृह विज्ञान लिया, गृह विज्ञान में भी वह अपने कॉलेज में टॉप की।स्नातक के पश्चात उसके घर वालों ने यह सोचकर उसकी शादी कर दिया कि ज्यादा पढ़- लिख लेगी तो दान- दहेज़ ज़्यादा देना पड़ेगा। नाजिया पढ़ना चाहती थी लेकिन वह किसी से भी अपने मन की बात बोल न सकी और आंँखों में बड़ा बनने का सपना लिए डोली में बैठकर अपने पी घर चली गई। वहांँ जाने पर भी उसने अपने सास- ससुर, पति सब की तन- मन से सेवा की वहांँ पर भी वो अपनी कर्मठता से सबकी लाडली हो गई। फिर एक दिन उसने हिम्मत बाँधकर अपनी सास से कहा, माँ जी मैं पढ़ना चाहती हूँ। तो उसकी मांँ ने कहा, यह तो अच्छी बात है इसमें इतना उदास और मायूस होकर कहने की क्या बात है। अभी मैं इतनी बूढ़ी नहीं हूंँ, मैं घर गृहस्थी संँभाल लूंँगी तू अपने सपनों को उड़ान दे,तू अपना भविष्य बना बेटा। तू क्या करना चाहती है? तब नाजिया ने कहा माँ जी मैं होटल मैनेजमेंट करना चाहती हूंँ। बस देखते ही देखते आलिया की सासू मांँ ने उसके पति और ससुर से कहा और उसका एक बड़े ही नामी-गिरामी विश्वविद्यालय में होटल मैनेजमेंट में दाखिला हो गया। होटल मैनेजमेंट में दाखिला पाकर नाजिया की ख़ुशी का ठिकाना नहीं था। वह अपने आप को अत्यंत सौभाग्यशाली समझ रही थी।नाजिया ने बड़े ही परिश्रम से मन लगाकर होटल मैनेजमेंट किया। उसके पश्चात वह अपना विद्यालय खोली, जिसमें गरीबी स्तर से नीचे जीवन जीने वाले बालक- बालिकाओं को लघु उद्योग के रूप में पाक कला की शिक्षा- दीक्षा नि: शुल्क दी जाती थी और ग़रीबी स्तर से ऊपर जीवन जीने वाले अर्थात उच्च परिवार के बच्चों से शुल्क लिया जाता था।
देखते ही देखते उसका विद्यालय आसपास के गांँव- शहर में विख्यात हो गया। दूर-दराज से लोग उसके विद्यालय में दाखिले के लिए आने लगे। फलस्वरुप उसने अपने विद्यालय में छात्रावास भी बनवा लिया और इस तरह से नाजिया की रसोई से शुरू हुई ज़िंदगी एक स्कूल से काॅलेज में तब्दील हो गई।
और इस तरह एक रसोई से शुरू हुई ज़िंदगी स्कूल पर आकर ख़त्म न होकर दुनिया में एक अच्छी पहचान एक अच्छा ओहदा दिलाई। और नाजिया ही नहीं नाजिया जैसे अनेकानेक बच्चों को अपने पैरों पर खड़े होने का उत्तम साधन उपलब्ध कराई।
सीख-वह कुछ और ज़माना था जब गणित और विज्ञान विषय के छात्रों को ही मेधावी समझा जाता था। आज का समय यह है कि हम हर कौशल से अपनी ज़िंदगी को सँवार,सुधार सकते हैं।
साधना शाही, वाराणसी
Sushi saxena
14-Feb-2024 06:23 PM
Very nice
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Mohammed urooj khan
13-Feb-2024 01:22 PM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Khushbu
12-Feb-2024 11:14 PM
Nice one
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