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स्वैच्छिक

शीर्षक स्वैच्छिक


मैं जब भी देखता हूं आईने में, 
मेरा प्रतिबिंब नजर आता है। 
हर  पल एक ही सवाल करता नजर आता है, 
कैसी चल रही हैं जिन्दगी तेरी
सब कुछ मिल गया या तलाशना बाकी हैं। 


ढूढ़ते जा रहा है जिसको, 
उससे मिलना बाकी हैं। 
कैसी चल रही है जिन्दगी तेरी, 
अभी क्या क्या बाकी हैं
देख अपनी निगाह से चारो तरफ, 
अभी पुरा जहान तलाशना बाकी हैं। 


थक मत जाना रुक मत जाना आगे निकल जाना, 
अभी तो उस तक पहुँचना बाकी हैं। 

कैसी चल रही हैं जिन्दगी तेरी, 
किसकी तलाश बाकी हैं। 

फिर मैं अपनी जिन्दगी को जवाब देते हुए 

खुश हु मैं अपनी जिन्दगी में, 
बस उसका आना बाकी हैं। 
तलाश तो है पुरी,
उसका मिलना बाकी हैं। 


Priyanshu choudhary
#प्रतियोगिता हेतु 

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4 Comments

Mohammed urooj khan

13-Feb-2024 12:51 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

12-Feb-2024 03:46 PM

👏👌

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Ajay Tiwari

12-Feb-2024 08:58 AM

Nice👍

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