GUDDU MUNERI

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दहेज


[दहेज] 


जब कभी बेटी के ब्याह की बात आयेगी 

शादी ब्याह तो दूर की बात 

रिश्ते से पहले वो दहेज में तौली जायेगी ।।


सगे संबंधी चाहे कितना ही चाह ले 

कोई रिश्ता मिले बिना दहेज का 

मेरी बेटी के सिवा कुछ नही रैज का ।।


सोचता हूं बिना दहेज के 

वो बात कहां हो पाएगी 

जिसकी बेटी खाली हाथ विदा हो गई

वो ससुराल में कहां ढंग से जी पाएगी ।।


बरात वालो के क्या क्या ताना कसी होगी 

वो पूछेंगे क्या क्या ले आई दहेज में 

शर्मिंदगी से झुकी हुई दूल्हे की गर्दन 

अब खड़ी हो गई पसोपेश में ।।


भूल गए  महिला की मान मर्यादा को 

तभी आना है तुझे दो लाख रुपए देने को 

तू न रह पाएगी इस घर, अब जा निकल 

कभी पांच लाख और एक गाड़ी ला देने को  ।।


दुनिया की बातें है तुझे अपनाने को 

मैं कहां से लाऊं बेटी दहेज तुझे सजाने को 

लालची हो गई है ये दुनिया 

बेटो पर जश्न मनाने को ।।


एक उम्र गुजर गई मेरी यहां 

एक बेटी को पढ़ा - लिखाने में 

तहजीब के दौर में कमा न सका 

दहेज में दो पैसे दिखाने को ।।


शर्म ओ हया और अखलाक है उसमे 

तुम टटोलते हो दौलत की खान हो उसमे 

एक जो तुम्हारे लिए सब भूल आई, भूल गए 

एक जो तुम्हे अपना वारिस देगी, भूल गए ।।


ऐसी कई बहन-बेटी किसी न किसी 

बचपन में तुम्हारे साथ खेली होगी

बड़प्पन में तुम्हारा सहारा बनी होगी 

लालची भूल गए ब्याह बारात के दिन 

तेरी भी बहन-बेटी थी वो कितना रोई होगी ।।


बेटी मेरी हारी तो आज मैं रोया हूं 

कल बेटी तेरी हारेगी कल तू रोएगा 

नसीब-वसीब का क्या कोसना 

आज जो पाएगा कल तू वो बोएगा ।।


      - गुड्डू मुनीरी सिकंदराबादी 

      - दिनांक : १२/०२/२०२४

      - विषय : दहेज 

      - आज की प्रतियोगिता हेतु 



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4 Comments

Gunjan Kamal

13-Feb-2024 09:14 PM

👌👏

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Mohammed urooj khan

13-Feb-2024 01:12 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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बेहतरीन

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