Sadhana Shahi

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14 फरवरी, प्रेम नहीं शहादत दिवस (कविता) -14-Feb-2024

प्रेम नहीं शहादत दिवस

वर्ष 2019 का अपराह्न था, मनहूस दिवस था 14 फरवरी। घटी उस दिन थी ऐसी घटना, खोया था हमने कई प्रहरी।

लाल गुलाब को देकर, कुछ जता रहे थे चाह। गोदी में कुछ सर रखे थे , कुछ पकड़े थे बांँह।

शबाब - कबाब में डूबे थे वो, आशिकी के लिए मंसूबे थे वो। कुछ का वेश छली और कपटी, कुछ चाल चले थे उलटी-पुलटी।

तभी घटी कुछ ऐसी घटना, जिसे भारतीय भुला न पाएंँ। जब तक सांँस में सांँस रहेगी, प्रेम दिवस हम नहीं मनाएंँ।

क्यों? यह जानना बड़ा ज़रूरी, चाह कभी ना रहे अधूरी। जानें आज का हम इतिहास, जो है हम सबके लिए खास।

ह्रदय विदारक पुलवामा हमला था, 40भारतीय सुरक्षाकर्मियों को निगला था । पूरा भारत सिसक रहा था, माथा सबका खिसक रहा था।

निकट अवंतीपोरा लेथपोरा इलाका, जैश मुहम्मद बुरी नज़र से ताका। हांँ, निंदा किया था पाकिस्तान, पर, ज़िम्मेदारी ना लिया मान।

कैसे भूलें इस दिन को हम, भारत पाया था कितना गम! आज याद करें विषधर की करनी, शेरों को दे लें श्रद्धांजलि।

भारत का ना प्रेम दिवसीय यह प्यारे, कितनी मांँ ने खोए आंँख के तारे। खुशियांँ भला हम कैसे मनाएंँ, उनकी शहादत कैसे भुलाएंँ!

भारत का यह दिवस है काला, भारत खोया 40 रखवाला। भारत कभी न भूले यह बलिदान , ऋणी सदा रहेगा हिंदुस्तान।

सूर्य सा चमका उनका परचम, विश्व था देखा ना देखे हम। इन आंँखों को हम नम करे कैसे, अपने शेर नमन करें कैसे।

मज़हब, जाति ,प्रांत की खा़तिर, आज कुछ उल्लू जूझ रहे हैं। हे ईश्वर! उनको समझाओ, भारत को कर तुच्छ रहे हैं।

करना था जिन पर गर्व सभी को, उनको आज भुला बैठे हैं। हम सबके थे जो रखवाले, कैसे जान गंँवा बैठे हैं।

देश की खा़तिर दिए शहादत, भारत पर अपना सब कुछ वारे, फूल व टेडी छोड़ के बच्चों, आओ उनकी आरती उतारें।

उनके घर में भी होंगे बच्चे, तकते होंगे उनकी राह, कुछ बहनें राखी को लेकर, रोती होंगी प्रति श्रावण माह।

उन शेरों की क्या करें बात, भारत सदा याद करे सौगात। उनका परिधान रक्तरंजित था, शौर्य तब भी ना मद्धिम था।

दिल के यदि किसी भी कोने में, खोया हुआ इंसान है ज़िंदा। जहांँ का अन्न -जल तुम हो भोगे, यदि उसकी थोड़ी है चिंता।

भूलो चॉकलेट टेडी गुलाब को, जेहन में रखो फ़ौजी को ज़िंदा। अखंड भारत का अलख जगाकर, दुश्मन को कर दो शर्मिंदा।

वीरों ने जो करी शहादत, उसको कैसे भुला पाओगे। भूल यदि जो तुम पाए तो, मुँह अपना कैसे दिखलाओगे।

लाल थे वो भी अपनी मांँ के, भार्या के थे वो अनुराग। अमन चैन से हम सो सकें, इसकी खा़तिर सब दिए त्याग।

साधना शाही, वाराणसी

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4 Comments

Gunjan Kamal

16-Feb-2024 11:43 PM

👏👌🏻

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Mohammed urooj khan

15-Feb-2024 11:47 AM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Sushi saxena

14-Feb-2024 04:11 PM

Very nice

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