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गुलाब के काॅंटे

आयोजन: दैनिक आयोजित होने वाली साहित्यिक प्रतियोगिता।

विधा: कविता, भाषा: हिन्दी

प्रकार: स्वरचित एवं मौलिक


शीर्षक: गुलाब के काॅंटे


जग सवालों का बंद पिटारा है, यहाँ जवाब बनना आसान नहीं है।

बाग़ में सख़्त काॅंटे भरे पड़े, कोमल गुलाब बनना आसान नहीं है।

मैंने जिनकी राह पर फूल बिछाए, वो मुझे काॅंटों से सहला रहे थे।

खुशबू बाॅंचते गुलाब के काॅंटे, स्वयं उसे ही नुकसान पहुँचा रहे थे।


मेरे जीवन से समय के फेर ने, सबसे प्यारा एक मीत छीन लिया।

जिसमें प्रत्येक पल सुरमई था, उस चरित्र से हर गीत छीन लिया।

हम बेवफ़ाई की रुदाली पे रुके, वो वफ़ा का साज़ गुनगुना रहे थे।

खुशबू बाॅंचते गुलाब के काॅंटे, स्वयं उसे ही नुकसान पहुँचा रहे थे।


बेवफ़ाई के बाद तो हमने भी, इस दिल का फाटक बंद कर दिया।

प्रेम भाव पर बसा एक गाँव, स्वांग रचने का नाटक बंद कर दिया।

हमने प्रपंच के मंच बंद किए, पर वो गिरे हुए पर्दों को उठा रहे थे।

खुशबू बाॅंचते गुलाब के काॅंटे, स्वयं उसे ही नुकसान पहुँचा रहे थे।


इस दिल की तसल्ली के लिए, हमने सनम को दूसरा मौका दिया।

पर उसने फ़रेबी का संग निभाते हुए, मेरे दिल को ही चौंका दिया।

हमने उन्हें सच कहने की हिदायत दी, वो झूठी दास्तां सुना रहे थे।

खुशबू बाॅंचते गुलाब के काॅंटे, स्वयं उसे ही नुकसान पहुँचा रहे थे।


आईना कभी झूठ नहीं बोलता, ये तो सच्चाई का साथ निभाता है।

हर आईना यूं चकनाचूर होकर, सच दिखाने की ही सज़ा पाता है।

सब आइने में ख़ुद को निहारें, हम आइने को आईना दिखा रहे थे।

खुशबू बाॅंचते गुलाब के काॅंटे, स्वयं उसे ही नुकसान पहुँचा रहे थे।


उनके मुॅंह से निकला हर शब्द, यों चिंगारी से ज्वाला बन जाता है।

कभी सबके राज़ जान लेता, कभी इशारे का हवाला बन जाता है।

जिन्होंने कस्बों को ख़ाक किया, हम उन्हें ही जलना सिखा रहे थे।

खुशबू बाॅंचते गुलाब के काॅंटे, स्वयं उसे ही नुकसान पहुँचा रहे थे।


आज अपने सनम से बिछड़े हुए, काफ़ी लंबा अरसा बीत चुका है।

गफ़लत में मदहोश सिकंदर हारा, होश में खड़ा बंदा जीत चुका है।

अब सही मायनों में इस ज़िंदगी से, पूरी वफ़ा हम भी निभा रहे थे।

खुशबू बाॅंचते गुलाब के काॅंटे, स्वयं उसे ही नुकसान पहुँचा रहे थे।


फरवरी में बसंत आगमन करें, जिसका परिदृश्य होता है निराला।

पर वैलेंटाइन संत ने डाकू बनकर, हर प्रेमी हृदय को हिला डाला।

सब लोग इश्क़ के पीछे पागल, हम गज़लों से दिल बहला रहे थे।

खुशबू बाॅंचते गुलाब के काॅंटे, स्वयं उसे ही नुकसान पहुँचा रहे थे।


©® हिमांशु बडोनी "दयानिधि"

जिला: पौड़ी गढ़वाल (उत्तराखण्ड)

Insta ID: @himanshupauri1

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7 Comments

जी सुंदरतम अभिव्यक्ति।

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बहुत ही उम्दा और खूबसूरत सृजन

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Himanshu Badoni "Dayanidhi"

16-Feb-2024 09:02 AM

धन्यवाद महोदय। 🙏🏻😊💐

Reply

Gunjan Kamal

16-Feb-2024 07:47 AM

👌👏

Reply

Himanshu Badoni "Dayanidhi"

16-Feb-2024 09:02 AM

धन्यवाद महोदया। 🙏🏻😊💐

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