Neeraj Agarwal

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लेखनी कहानी -15-Feb-2024

शीर्षक - वो वेलेंटाइन का दिन था


वह वैलेंटाइन का दिन था जब हम सभी लोग अपना आधुनिक समय के साथ वैलेंटाइन बनाते थे। सच तो जीवन के बहुत से पहलू होते हैं और हम सभी लोग अपने-अपने पहलू के साथ सोच विचार और समझ रखते हैं क्योंकि हम किसी भी शब्द के अर्थ को गलत बहुत जल्दी लेते हैं सही बहुत काम लेते हैं क्योंकि हम सभी जीवन में अपने स्वार्थ और अपने फायदे के गलत शब्दों को भी सही समझते हैं वैसे ही शब्दों में एक शब्द वैलेंटाइन है हम सभी जानते हैं वैलेंटाइन का मतलब क्या होता है परंतु क्या हम उसे वैलेंटाइन के शब्द के अर्थ को भी निभाते और समझते हैं हां सच वह वैलेंटाइन का दिन था शहर में सभी जगह नियम और कानून के पर्चे चिपके हुए थे सभी ने वैलेंटाइन दिन के साथ-साथ वैलेंटाइन के दिन मिलना और किसी के साथ बिना संबंध के देख लेना एक अपराध सा घोषित कर दिया था सच तो वह वैलेंटाइन का दिन था की हम अपने मौज मस्ती में बिना सो विचारे वो वैलेंटाइन का दिन था। हमारी शादी हो चुकी थी और हम अपने परिवार में मौज मस्ती के साथ खुश थे और हमारी पत्नी अनीता हमसे कह चुकी थी सुनो जी अब आपकी हमसे शादी हो चुकी है अब आप वैलेंटाइन डे हमारे साथ ही मनाया करिए। सच तो यही है कि हम पुरुष कुछ मां और भाव से दिल फेक भी होती हैं ऐसा नहीं कि हम अपनी पत्नी और बच्चों से प्रेम और सम्मान नहीं करते परंतु एक आदत होती है घर की मुर्गी दाल बराबर ऐसा ही इस कहानी के साथ हम कुछ हास्य व्यंग और प्रेरक के साथ हम नया और अलग सोच और कल्पना को सच कह रही है वो वैलेंटाइन का दिन था । हम सुबह हीरो बनकर सज धज कर अपने ऑफिस के लिए निकल चुके थे और ऑफिस में जो हमारे सहपाठी थी उनके साथ फ्लर्ट करते हुए हम पार्क में घूम रहे थे बस वो वैलेंटाइन का दिन था।ही मन पार्क में कानून हमारे पीछे पड़ गया और हम दोनों को सामने खड़ा कर हमारे संबंधों को पूछने का प्रयास और कानून गतिविधि कर दी वो वैलेंटाइन का दिन था हमारे साथ हमारे सहपाठी तो कानून ने नारी शक्ति समझ कर छोड़ दिया और हम पुरुषों के लिए वो वैलेंटाइन का दिन था। हमारे लिए वह यादगार बना दिया जब हम घर पहुंचे तो हमारी पत्नी अनीता ने हमारा जिस डंडों की मार से लाल नीला देखा और हंस कर बोली और मना आए वैलेंटाइन डे हम भी बस कुछ उदास और शर्म के साथ साथ अपनी पत्नी को देख रहे थें। और वह हमको देख रही थी मेरी पत्नी जल्दी से रसोई घर से हल्दी लगा गर्म पानी ले आई और मेरी पीठ और टांगों की सिकाई कर दी वोह वैलेंटाइन का दिन था। सच सच हम अपनी पत्नी को देख रहे थे और उसे गली से लगाकर अपनी गलती और अपने प्रेम को मन ही मन भावों में हम सोच रहे थे कि वो वैलेंटाइन का दिन था।


नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र

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5 Comments

Rupesh Kumar

18-Feb-2024 05:23 PM

बहुत खूब

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Shnaya

17-Feb-2024 10:47 PM

👏🙏

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Mohammed urooj khan

17-Feb-2024 03:48 PM

👌🏾👌🏾

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