तहखाना

तहखाना


कई ख्वाहिशों दफन हैं दिल के इस तहखाने में
इसलिए डर लगता है अब वहां जाने में
जाने किसका भूत फिर से सर चढ़ जाए
जाने कौन सी इच्छा पीछे पड़ जाए।

कई तालों में बंद हैं, कोने के संदूक में
कुछ को दफना दिया भ्रूण के ही रूप में
कुछ तो जवान हो के आत्महत्या कर गई
शायद उनसे उनकी अस्मत ही छिन गई।

फिर वो जो समय की दहलीज पर दम तोड़ चुकी
अभी सही वक्त नहीं ये कह के मुंह मोड़ चुकी
कुछ वो भी जो भरी जवानी में ही बूढ़ा गई
दर्पण देखते देखते जिनके चेहरे पे झुरियां आ गई।

फिर सुना एक मशहूर शायर का कलाम
हजारों ख्वाहिशें ऐसी, उन्ही को मेरा सलाम
हर ख्वाहिश के साथ साथ दम निकलता गया
और मैं जवान से बेदम एक शरीर बनता गया।

एक तहखाना अंदर तो एक संदूक बाहर है
उसमे अभी भी कुछ अधमरी और कुछ बीमार हैं
जो समय के साथ साथ शायद दम तोड़ रही
और साथ छोड़ मेरा, मुझको तनहा छोड़ रही।

अब ना लौटेंगी फिर कभी ये तो वादा नहीं
पर उन्हें पूरा करने का अब कोई इरादा भी नहीं
इसलिए दिल के तहखाने पे एक बड़ा ताला लगा दिया है
और उस पर मुस्कान का पहरा बिठा दिया है।।

आभार - नवीन पहल - १७.०२.२०२४ 🌹👍🙏😀

# दैनिक प्रतियोगिता हेतु कविता 


   15
6 Comments

Gunjan Kamal

20-Feb-2024 03:06 PM

👏🏻👌🏻

Reply

Mohammed urooj khan

19-Feb-2024 01:18 AM

अदभुत 👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

Rupesh Kumar

18-Feb-2024 06:09 PM

बहुत खूब

Reply