Rohtash Verma

Add To collaction

लेखनी प्रतियोगिता -20-Feb-2024

संस्मरणात्मक लघुकथा - बंटवारा 


वर्षा ऋतु ने अभी कुछ दिनों से करवट बदली है तभी प्रातः काल में ठंड का बोलबाला बढ़ गया है।सर्द के आगमन को लोगों के ऊनी लिबास से पहचाना जा सकता है क्योंकि अभी हल्की ठंड ने धरा पर डेरा डालना शुरू कर दिया है। बादलों ने अपने ऊष्म से ठंड को अभी दबा रखा है इसलिए सूर्य अपनी लाल लाल गालों को खिलाते हुए धीरे धीरे बादलों में मुस्कुरा रहा है।

हमारा सालासर पैदल यात्री संघ चूरू के बाई पास बने पुलिये को पार करते हुए सुबह की चाय नाश्ते के लिए ठहरा।हम लोगों ने जल्दी से उन भक्तों के लिए चाय तैयार की और पीछे छूटे कुछ साथी भक्तों का इंतजार करने लगे। चूरू वैसे भी सबसे ठंडा और गर्म जिला माना जाता है इसलिए वहां ठंड का प्रभाव सभी जनों में भलीभांति देखा जा सकता था। पीछे छूटे साथी भक्तों के पहुंचने पर उन्हें चाय नाश्ता दिया और साथ में उनकी सेवा में आए हम सभी साथियों ने भी चाय नाश्ता किया। थोड़ी देर विश्राम के बाद पैदल भक्त रवाना हुए और हम लोग सारा सामान गाड़ी में रखकर कुछ देर और विश्राम करने लगे।

वहां पर आते जाते यात्रियों, वाहनों का शोर भी बढ़ गया था। सूरज क्षितिज तट को पार कर थोड़ा और ऊपर आ गया था। स्कूली बच्चे भी जाते दिखाई देने लगे थे कि तभी दो बालक (एक की उम्र सात साल के शायद दूसरा नौ साल के लगभग) वहां आए और स्कूली बस को देखकर हमारी गाड़ी के पीछे छूपने लगे। उनकी ड्रेस और बस्ते से मैं जान गया था कि स्कूल जा रहें हैं मगर वो छिपे क्यों? इस बात को जानने के लिए मैंने उनसे पूछा......

छोटू किससे डर रहे हो?

उस बस से... ( बड़े वाले ने इशारा कर कहा)!

वो तो स्कूली बस है, उससे क्या डरना? और वैसे भी तुम दोनों स्कूल ही तो जा रहे हो ना....!(मैंने संशयात्मक पूछा।)

नहीं!हम स्कूल नहीं जा रहे।(छोटे वाले ने उत्तर दिया।)

तो...…... कहां?

हम मदरसे में जा रहे हैं। इसलिए उनसे छिप रहें हैं।(दोनों ने जवाब दिया)

अच्छा! मदरसे में जा रहे हो तो उनसे क्यों छिप रहे हो?( मैंने फिर कौतूहल से प्रश्न किया।)

बड़ा वाला बोला.... वो हमें जबरदस्ती से पकड़ कर स्कूल ले जाते हैं।

अच्छा! तो क्या हुआ, जैसे मदरसे होते हैं वैसे ही तो स्कूल होते हैं ना। पढ़ाई  वहां होती है और पढ़ाई ही स्कूल में, फिर दोनों में भिन्नता क्या है?

नहीं....!हम मुस्लिम है। हमारे अम्मी अब्बू कहते हैं कि स्कूल हमारे लिए नहीं होते।(दोनों एक साथ बोले) फिर दोनों दौड़ चले।

ऐसा सुनकर मैं सन्न रह गया।यह बालपन जो सिर्फ मौज मस्ती और खेलने-कूदने की उम्र होती है। इसमें तो न कोई जाति होती है और न ही कोई धर्म, फिर इस बालपन में यों जाति-धर्म का बंटवारा कर कैसे कोई जहर घोल सकता है। मैं सहम सा गया...... कहां ये बचपन परिंदों की भांति मंदिर से मस्जिद तक,गिरजा से गुरुद्वारे तक बिना किसी भेदभाव के फैला रहना था और कहां अब इसमें भी से बंटवारा किया जा रहा है।

साथियों ने पूछा कि क्या हुआ? ऐसा उदास सा क्यों लग रहा है?

मैंने कहा... कुछ नहीं बस ऐसे ही, एक लम्बी सांस अंदर खींचीं और गाड़ी में रवाना हो गया।

रोहताश वर्मा 'मुसाफ़िर'

   20
4 Comments

Shnaya

21-Feb-2024 01:14 PM

Nice one

Reply

Mohammed urooj khan

21-Feb-2024 01:07 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

Reply

Varsha_Upadhyay

20-Feb-2024 06:10 PM

Nice

Reply