इज़्ज़त
कहाँ आसान होता है सभी को बहन समझ लेना,
स्नेह से हाथ रख देना तो झुककर पाँव छू लेना,
घरों में कब कहाँ इज्ज़त कभी नारी की होती है,
जो घर में नहीं समझे उसे बाहर समझ लेना!!
नहीं कोई हुनर साधक जो मेरी शायरी समझे,
उलझते जाओगे इसमें न कोई सवाल ही सुलझे,
तू खुद को भूलकर इसकी चादर में सिमट कर देख,
बजूद तेरा भी निखरे तरबियत(तालीम) मेरी भी समझे!!
ढूंढ़ती फिरती क्या आँखें उसे अंदर परख लेना,
कुछ खुद के लिए रखना कुछ बाहर परस देना,
यही दस्तूर दुनिया का जो बोया है वही काटे,
ख़लिश पाई है काँटों सी खुशबू को चमन देना!!
शमा लेकर भटकते हो नहीं कोई है बस्ती में,
बड़ा सस्ता है ये जीवन कहाँ कोई है हस्ती में,
नहीं गुजरा यहां कोई गुजरती जाती हैं सदियां,
कहीं आहें सुलगती हैं कहीं कोई है मस्ती में!!
गुज़रते थे अकड़ कर हम बड़े मजबूत इरादे थे,
सितारे ओढ़ते तन पर चाँद सूरज से वादे थे,
बिछी बिसात जीवन की बढ़ा वज़ीर का आलम,
नमी ठहरी है आँखों में वक्त से बिछड़े प्यादे थे!!
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
RISHITA
22-Feb-2024 12:55 AM
Awesome
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नंदिता राय
21-Feb-2024 11:45 PM
Nyc
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Anjali korde
21-Feb-2024 08:12 PM
Amazing
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