Sadhana Shahi

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श्रृंगार या संघर्ष (कहानी) प्रतियोगिता हेतु-21-Feb-2024

दिनांक - 21.02.2024 दिवस- बुधवार प्रदत्त विषय- ऋंगार या संघर्ष प्रतियोगिता हेतु

मोनिका बचपन से ही सजने-संँवरने में बहुत रुचि रखती थी। उसे जब भी एकांत में अवसर मिल जाता है वह छुपकर मम्मी का मेकअप किट लेकर ऋंगर करने बैठ जाती। बचपन में उसके श्रृंगार करने को तो लोग हंँसी-ठिठोली में लेते थे किंतु वह जैसे-जैसे बड़ी होने लगी, उसके श्रृंगार करने को घर- परिवार में लोग अन्यथा लेने लगे।

उसके लिए उसे डांँट पड़ने लगी कि उसका मन पढ़ाई-लिखाई में नहीं लगता है यह पूरे समय सिर्फ़ साजो- श्रृंगार में ही लगी रहती है।

लेकिन मोनिका का मन ऋंगार से हटता ही नहीं। उसे जब भी कहीं जाना होता वह श्रृंगार में लग जाती। समय के साथ-साथ मोनिका बड़ी हुई। उसने कक्षा दसवीं की परीक्षा दसवीं में अच्छे अंक नहीं आए।

अब तो उसके श्रृंगार को लेकर घर में और भी तरह-तरह की बातें होने लगी। तरह-तरह के ताने दिए जाने लगे। इतने के बावजूद भी मोनिका के सर से श्रृंगार का भूत नहीं उतरा। वह देर रात जब सब लोग सो जाते तब ख़ुद को तरह-तरह से श्रृंगार करके सजाती और फिर मुंँह धो कर सो जाती।

उसका एडमिशन कक्षा ग्यारहवीं में हुआ। उसके माता-पिता चाहते थे कि वह बायो लेकर के पढ़े और डॉक्टर बने। लेकिन मोनिका ने कला वर्ग लिया जिसकी वज़ह से उसके परिवार वालों को बहुत ही नाराज़गी थी। वह कला वर्ग से 12वीं पास कीअब घर परिवार वाले उसे तरह-तरह के ताने सुनाएंँ। अब क्या करोगी? आर्ट पढ़कर कोई क्या कर सकता है? कुछ नहीं कर पाओगी। बस घर गृहस्थी में ही रह जाओगी।

इस तरह से अनेकानेक तरह से उसे प्रताड़ित किया जाने लगा। मोनिका ने कहा ,मैं ब्यूटी पार्लर का कोर्स करूंँगी। क्या! मोनिका के मुँह से ब्यूटी पार्लर शब्द सुनकर पूरे घर वाले अवाक हो गए। सब मोनिका को गुनहगार की तरह देखने लगे। लेकिन मोनिका का फैसला अडिग था।

मोनिका ने कहा मेरा पढ़ाई में मन नहीं लगता। मैं पढ़ाई-लिखाई नहीं करूंँगी मुझे तो पार्लर का कोर्स ही करना है। मोनिका का इस तरह का फ़ैसला सुनकर उसका घर से बाहर निकलना बंद कर दिया गया। कॉलेज तो पहले ही से ही नहीं जाती थी। अब मोनिका घर में रहने लगी। अब उसके माता-पिता ने सोचा जब इसे पढ़ाई-लिखाई नहीं करना है तो इसका शादी- ब्याह कर दें।

मोनिका को इस बात की भनक लग गई। उसकी एक सहेली महाराष्ट्र में बहुत अच्छी ब्यूटीशियन थी मोनिका ने एक दिन छुपकर उसे फ़ोन किया और अपनी स्थिति से उसे अवगत कराया।

मोनिका की सहेली ने अफ़सोस जताते हुए कहा, यही तो दिक्कत है, मांँ-बाप बच्चों को समझते नहीं है। फिर बता तू क्या चाहती है? मोनिका ने कहा अरे यार मैं चाहती क्या हूंँ मैं चाह करके भी नहीं पढ़ लिख सकती। क्योंकि मेरा पढ़ने में मन ही नहीं लगता है। अगर मैने पार्लर कोर्स नहीं किया तो मैं कुछ नहीं कर पाऊंँगी। तब मोनिका की सहेली ने कहा तब तुझे जीवन में संघर्ष करने के लिए तैयार होना होगा। क्योंकि, तेरे साथ कोई नहीं है तुझे अपने बूते अपनी ज़िंदगी में एक मुकाम हासिल करके अपने मांँ- बाप, गांव शहर, दुनिया, समाज सबको दिखाना है तेरा फ़ैसला ग़लत नहीं था।

अपनी सहेली की इस तरह की बात सुनकर मोनिका के अंदर एक विश्वास जगा और उसने कहा मैं करूंँगी मैं सब कुछ करूंँगी, लेकिन अपने आप को एक सफ़ल ब्यूटीशियन बनाकर दिखाऊंँगी।यह साबित कर दूंँगी कि हमेशा मांँ-बाप सही नहीं रहते हैं। समय के साथ-साथ मांँ-बाप को बच्चों को भी समझना चाहिए। इसके बाद मोनिका के दिमाग में बस दिन- रात ब्यूटीशियन, ब्यूटीशियन और ब्यूटीशियन ही चलता है। लेकिन उसके ऊपर पाबंदियांँ और भी बढ़ती जा रही थीं। एक दिन मोनिका के घर मेहमान आए हुए थे, सब लोग उसमें व्यस्त थे, तभी मोनिका बाजार के बहाने घर से निकली और वह मुंबई चली गई। जब उसे गए हुए काफ़ी देर हो गया तो वहांँ पर इसकी खोजाई होने लगी। आस-पड़ोस, दोस्त सबके यहांँ उसकी खोजबीन हुई पर वह कहीं भी नहीं मिली। अंत में मांँ-बाप थक हारकर बैठ गए और सब एक दूसरे को दोष देने लगे तुम्हारी वज़ह से, तुम्हारी वजह से किसी को कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था कि मोनिका को कहांँ खोजें। क्योंकि, गांँव की बात थी अतः लोग पुलिस कंप्लेंट भी नहीं कर रहे थे क्योंकि उसमें उनकी बेइज्जती होती, कि लड़की भाग गई।

मोनिका मुंबई गई अपनी सहेली से मिली, उसकी सहेली ने कहा, देख मैं तेरे लिए बहुत कुछ तो नहीं कर सकती लेकिन हांँ अभी मैं तुझे अपने यहांँ पार्लर में 10,000 की सैलरी पर हेल्पर रख लूंँगी और तो जब तक तेरा रहने- खाने का व्यवस्था नहीं होता है एक-दो महीना मेरे साथ रह सकती है उसके बाद तू अपना व्यवस्था कर लेना।

अपनी सहेली की बात सुनकर मोनिका बड़ी ही प्रसन्न हुई। किंतु, मुंबई जैसे शहर में 10,000 होते ही क्या हैं! फिर भी मोनिका बहुत ख़ुश थी वह सुबह उठती, अपनी सहेली के घर के सारे कामों में मदद करती तैयार होकर पार्लर जाती पार्लर में भी वह बहुत मन से काम करती।

जब उसके रहने खाने और काम करने का ठिकाना निश्चित हो गया तब उसने एक दिन अपने घर वालों को फ़ोन करके यह बात बता दिया कि आप परेशान न हों मैं मुंबई में सुरक्षित हूंँ और मैं अपने सपने को पूरा करने में लग गई हूँ। सब परिवार वालों ने कहा, लड़की बिगड़ गई है आवारा हो गई है, पागल हो गई है। मां-बाप ने उसे बहुत समझाया बहुत धमकी दिया, किंतु मोनिका के ऊपर कोई असर नहीं हुआ।

मोनिका अपनी सहेली के घर तथा पार्लर का सभी काम बड़े ही इमानदारी से करती दो , तीन महीने में सभी कस्टमर उससे बड़े ख़ुश रहने लगे और जो भी आता काम के लिए उसे ही खोजता। इसका परिणाम यह हुआ कि उसकी जो सहेली 1,2 महीने के लिए पनाह दी थी उसे सालों का पनाह दे दी।

मोनिका अपनी सहेली के यहांँ काम की। 1 साल में वह पूरी तरह पारंगत हो गई। उसके पश्चात मोनिका की सहेली ने कहा कि मोनिका अब तू चाहे तो अपना कहीं अलग पार्लर खोल सकती है। मोनिका को उसकी बात ठीक लगी। वह अपनी सहेली के घर से क़रीब 50 किलोमीटर दूर अपना छोटा सा दुकान किराए पर ली और एक छोटे से कमरे में अपना गुज़र- वसर करने लगी। वह पूरे दिन अकेले पार्लर की सा़फ- सफाई और ब्यूटीशियन का काम सारा कुछ करती और देर रात घर जाने पर घर का भी जो काम रहता खाना बनाना, साफ़- सफ़ाई सब करती। आस- पड़ोस वाले भी उसकी मेहनत को देखकर दंग रह जाते। एक दिन उसके पिता उससे मिलने आए उसका घर देखकर उन्होंने समझाया मोनिका अभी भी तेरे पास वक्त है गांँव लौट जा उतना बड़ा घर छोड़कर तू इस छोटी सी काल कोठरी में गुज़ारा कर रही है। मोनिका अपने पिताजी को प्रणाम की और बोली, पिताजी पूर्णिमा के पहले अमावस आता ही है। हर दिन के पहले रात आती ही है। यह मेरा रात है और मेरे रात का सवेरा बहुत ही स्वर्णिम होगा। तब आपको मुझ पर फक्र होगा। उसकी बाद सुनकर पिताजी चिढ़ गए और तुरंत बैग उठाकर चलते हुए बोले, कर अपनी ज़िंदगी बर्बाद और गांँव के लिए रवाना हो गए।

मोनिका अपने पिताजी को तब तक देखती रही जब तक कि वह उसकी आंँखों से ओझल नहीं हों गए। उसके बाद उसने फिर उसी मेहनत, उत्साह जोश से अपने काम को करना शुरू की। 6 8 महीने बीते थे कि महाराष्ट्र में एक सेमिनार हुआ उस सेमिनार में मेकअप एप्लीकेशन का कंपटीशन भी था। मोनिका उस सेमिनार में ज्वाइन हुई और उसने उस सेमिनार में बेस्ट प्रदर्शन किया।

किंतु उसका संघर्ष यहीं पर नहीं ख़त्म हुआ उस प्रदर्शन के पश्चात महाराष्ट्र की जो जानी-मानी ब्यूटीशियन्स थीं वो उससे चिढ़ने लगीं कि झोपड़पट्टी की ब्यूटीशियन हमारा टक्कर लेगी। यह हमारी बराबरी करेगी और एक दिन रात में कुछ लोगों ने मिलकर उसका पूरा ब्यूटी पार्लर जला दिया।

यह ब्यूटी पार्लर क्या मोनिका का तो मानो सपना ही जल गया हो। और कुछ दिनों उदास, निराश, हताश बैठी रही, उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी ज़िंदगी कहांँ से शुरू करे। लेकिन फ़िर से उसने अपनी हिम्मत को बांँधा अपने हौसले को बुलंद किया और थोड़े से सामान से फिर से अपना पार्लर शुरू की, और एक नए सिरे से उसने फिर से मेहनत करना शुरू किया।

उसके कस्टमर फिर उसके पास आने लगे और देखते ही देखते साल 2 साल में मोनिका का पार्लर आस-पास के एरिया में विख्यात हो गया। उसके पश्चात उसने एक बहुत बड़ा सैलून किराए पर लिया, जहांँ उसने पांँच लड़कियों को हेल्पर रखा। वह अपने हेल्पर के साथ बहुत अच्छे से मिलकर रहती। सब ने मिलकर इतना मेहनत किया कि देखते ही देखते मोनिका का पार्लर महाराष्ट्र के टॉप पार्लर में शामिल हो गया।तमाम अख़बारों में आए दिन उसके पार्लर के चर्चाएंँ छपने लगीं। टी.वी. में वह आने लगी।

एक दिन टी.वी. पर उसके पिता न्यूज़ देख रहे थे तभी उन्होंने मोनिका को देखा, वह पूरे घरवालों को बुलाए सब दौड़कर आए, अरे! यह तो मोनिका है ।अरे !यह तो मोनिका है। सब की आंँखें फटी की फटी रह गईं। यह वही मोनिका है जिसको परिवार वाले ने दुत्कार कर छोड़ दिया था। फिर कहा जाता है ना जब इंसान के अच्छे दिन होते हैं तो सभी अपने हो जाते हैं ।वही चीज़ मोनिका के साथ भी हुआ उसके माता-पिता चाचा- चाची सब साजो- समान के साथ मोनिका से मिलने के लिए गए। मोनिका अपने घर वालों को देखकर बहुत ख़ुश हुई और मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दे रही थी कि हे प्रभु! आप मेरे संघर्ष को रंग दिए, मेरे अंदर संघर्ष करने का जज़्बा कायम किये। यह जज़्बा ही श्रृंगार से संघर्ष तक पहुंँचाया जिसकी वज़ह से आज मैं अपने क्षेत्र में सफल हूंँ।

और इस तरह मोनिका का साजो श्रृंगार तथा संघर्ष उसे परिवार गांव देश और समाज में एक सफल युवती के रूप में अपनी पहचान बनाने में अहम भूमिका अदा किया।

सीख - यह सही है कि बच्चों से माँ -बापसमझदार होते हैं लेकिन समय के साथ-साथ एक अवस्था आने पर बच्चे भी समझदार हो जाते हैं एक अच्छे अभिभावक होने के नाते हमें बच्चों की बात को बड़े ध्यान से सुनना ,समझना चाहिए और उनके अंदर जो भी कौशल है उसे कौशल में किस तरह से विकास हो सकता है अपना योगदान देना चाहिए ना कि उन्हें हातोत्साहित करना चाहिए।

साधना शाही,वाराणसी

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7 Comments

kashish

27-Feb-2024 02:44 PM

Amazing

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Shnaya

23-Feb-2024 12:56 AM

Nice

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Gunjan Kamal

22-Feb-2024 11:25 PM

शानदार प्रस्तुति

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