लेखनी कविता शीर्षक -वजूद प्रतियोगिता हेतु -29-Feb-2024

शीर्षक - वजूद💐💐💐
जब होता नही हूं मैं मेरे अंदर कौन होता है,
जब रोता नही हूं मैं मेरे अंदर कौन रोता है।
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गुजरा इक जमाना है धड़के इस दिल को,
तन्हाइयों में फिर मेरे साथ ये कौन होता है।
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इश्तिहार ही तो है कहानियां जमाने भर की,
सुनने सुनाने से भला किसका कौन होता है।
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कल सारी रात मेरी मुझसे ही जिरह हो गई,
हारना खुद से ही का मजा कुछ और होता है।
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बहकते जब मेरे कदमअंधेरी रातों की राहों में ,
थामता कोई साया हिज्र में शायद कोई होता है।
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कभी मिले कंही "रजत" तो उसे बताना जरूर,
हकीकत में सपनों का कँहा कोई वजूद होता है।
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                                  रजत दीक्षित"रजत"
                                जगदलपुर बस्तर(छ.ग)
                                         स्वरचित
                                   सर्वाधिकार सुरक्षित

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4 Comments

Mohammed urooj khan

02-Mar-2024 11:35 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

01-Mar-2024 11:31 PM

बहुत खूब

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Wahhh बहुत ही खूबसूरत रचना

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