lalita kashyap

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सूर्य




मनोरम छंद
2122   2122

विषय-सूर्य

भोर होते आ गगन पर।
प्रेम से नित आ सभी पर।।
स्वर्ण आभा रोशनी कर।
सृष्टि को नव चेतना भर।।

ताप भरकर मौन धरती।
जागतें हैं अंक अंकुर।।
पुष्प उपवन में खिले नित।
चूमकर भागे पवन नित।।

झूमते दल जलधरों के।
नील नभ पर मनहरों के।।
आ पिघल कर खंड हिम जल।
बहत नदिया नाद कल-कल।।

स्वर्ण आभा मनहरण सी।
है प्रभा नित जल तरण सी।।
रूप की सुंदर घटा है।
धूप की अनुपम छटा है।

नित्य जग को है जगाता।
है बना सब का विधाता।।
घोर तम रजनी हटाता।
चेतना जन-जन बढ़ाता।।

ललिता कश्यप जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश






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3 Comments

Varsha_Upadhyay

14-Mar-2024 07:07 PM

Nice

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Gunjan Kamal

13-Mar-2024 10:32 PM

बहुत खूब

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Mohammed urooj khan

06-Mar-2024 12:19 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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