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लेखनी प्रतियोगिता -06-Mar-2024"जर्जर होती कविता ये"

"जर्जर होती कविता ये"

जर्जर होती कविता ये क्या जर्ज़र ही रह जायेगी। 

या ऊबड़-खाबड़ रस्तों पे चल मंज़िल अपनी पाएगी।। 


तूफ़ानों में कश्ती माझी की क्या बीच भंवर फंस जाएगी। 

या फ़िर सागर में उठती लहरों सी साहिल से मिल पाएगी।।


अपने शब्दों के जादू से क्या अध्याय नया रच जाएगी। 

या खंडर होते मकानों सी बिख़री मलबा सी रह जायेगी।


चट्टानों में आग लगी सी क्या पार उसे कर पाएगी। 

या सारे शब्दों को कर इकट्ठा भस्म वहीं हो जायेगी।।

जर्जर होती कविता यह क्या जर्जर ही रह जाएगी।

मधु गुप्ता "अपराजिता"


 

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3 Comments

Gunjan Kamal

13-Mar-2024 10:28 PM

बहुत खूब

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Mohammed urooj khan

08-Mar-2024 01:28 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Babita patel

06-Mar-2024 03:27 PM

Very nice

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