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चुनाव

दौर चुनाव का छा गया है।

छिपे थे गुर्गे बाहर आए।
एक-एक की करें मनौती।
मौज मुफ़्त की जनता करती।

कोई आंदोलन रैली हो। 
अगवानी जनता ही करती।
दूल्हे जैसा नायक चलता। 
ताक धिना धिन जनता करती।

आगजनी व लड़ाई झगड़ा। 
सरदारी गुर्गे ही करते।
जिह्वा जैसे भीतर घुसते। 
जनता हार पनही पहनती।

कोई नेता भाषण देता। 
मीलों तक मजमा लगता है।
जातिवाद का जहर फैलता। 
जैकारा जनता ही करती। 

गुण्डागर्दी या मक्कारी। 
नेता संग गुर्गे भी करते।
छद्म वेश में छिपकर रहते। 
आक्षेप जनता ही सहती। 

मुखिया एसी कार पधारें। 
जनता उनके पीछे दौड़े।
मेरी जाति के संग नेता। 
वोट उसी को ही दम भरती।

विपक्षी दल का हमला होता। 
नायक कभी हाथ ना आए। 
लाठी चले या पत्थर बाजी। 
आह-आह जनता ही करती।

अगुआ के बच्चे विदेश में। 
कोई सेना भक्त कहाँ है।
सीमा पर फौजी शहीद हो। 
देशभक्त जनता ही मरती।

गद्दारों की रैली होती। 
देशद्रोह गलबहियाँ करते।
पाकिस्तान जिंदा रखने का। 
शोर बुलन्द जनता ही करती।

रोटी हिंदुस्तान की खाएँ। 
भक्तिभाव से पाकिस्तानी।
राजद्रोह का नहीं मुकद्दमा। 
क्यों न इनको पुलिस पकड़ती।

भड़काऊ भाषण देते हैं। 
भोले भाले लोग फँसाते।
लालच में आ जाती जनता। 
मत से महंगी रोटी पड़ती।।

कैसा दोषी किसे सुधारें। 
खोटे सिक्के भरे पड़े हैं।
इक थैले में संगम होता। 
खन-खन-खन जनता ही करती।

जनता "श्री" पानी का रेला। 
प्रबल वेग से बहता जाए। 
वृक्ष विशाल उखाड़ फेंकती। 
तख्त पलट जनता ही करती। 

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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7 Comments

Gunjan Kamal

13-Mar-2024 10:20 PM

बहुत खूब

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kashish

09-Mar-2024 01:52 PM

Best

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Mohammed urooj khan

09-Mar-2024 01:22 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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