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चौपाइयाँ

चौपाइयाँ
मिल-जुल कर सब रहना भाई।
इसमें रहती सदा भलाई।।

सुख-दुख में सहभागी रहना।
मानव-जीवन का है गहना।।

जीवन को जिसने समझा है।
कभी नहीं भ्रम में उलझा है।।

मानवता ही धर्म एक है।
निर्बल-सेवा कर्म नेक है।।

बिन छल-कपट हृदय है जिसका।
हर जन प्रिय रहता है उसका ।।

होता है सम्मान उसी का।
करे न जो अपमान किसी का।।

सुंदर सोच सदा हितकारी।
देव तुल्य जग में उपकारी।।
       
हितकर कर्म नाम-यश देता।
कर्म आसुरी सब ले लेता ।।

प्रेम-धर्म है धर्म अनूठा।
करे मुदित जो हिय है रूठा।।

करें कर्म हम नैतिकता का।
छाँड़ि लोभ जग भौतिकता का।।
        ©डॉ0हरि नाथ मिश्र
            991944637

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4 Comments

Gunjan Kamal

13-Mar-2024 08:46 PM

बहुत खूब

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Mohammed urooj khan

11-Mar-2024 01:46 PM

👌🏾👌🏾👌🏾

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Abhinav ji

11-Mar-2024 09:26 AM

Nice👍

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