Vipin Bansal

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डर

मुझे मौत तुझसे नहीं 

जिन्दगी से डर लगता है।
अंधेरी रात की तन्हाईयों में 
मैं गमों को छिपा देता हूं। 
सुकून इतना मिलता है, दिल को,
अश्कों को बहा देता हूँ। 
मुझे रात की डसती तन्हाईयों से नहीं, 
महफिलों के उजालों से डर लगता है। 
मंजिलें दिखाकर रोशनी ने मुझको लूटा,
मुझे अंधेरो से नहीं 
रोशनी से डर लगता है।
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है। 

किसी ने दिल्लगी की हमसे 
जिसे न हम समझे न वो समझे 
कलम हो गए उस दिल्लगी से हम
उसे हादसा समझे या कत्ल समझे 
मुझसे नफरत करो संगदिल जहाँ वालों 
मुझे नफरत से नहीं 
प्यार के नाम से डर लगता है 
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है 
वफा के नाम पर 
गर गैर बेवफाई करते, 
गम न होता मुझको,
मुझे गैरों की बेवफाई से नहीं,
अपनों की वफा से डर लगता है। 
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है। 

दुनिया कहती है ! मीठीवाणी बोलकर, 
गैरों को बना लो अपना !
मैं कहूँ अगर , मीठीवाणी में कितना विष मिला है
पिया हैं किसी ने तो क्या कमी हैं
कुछ कड़वे बोल, कुछ कड़वे सच
जीवन पथ का चिराग होते हैं।
मुझे उन कड़वे बोलों से नहीं, 
मुझे उन कड़वी सच्चाई से नहीं। 
विष मिली मीठीवाणी से डर लगता है।
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है।

मौत तेरे आगोश में संसार की हर बसर है 
जिन्दगी के तपते आँगन में 
तू बहता शीतल जल हैं
जिंदगी किस कदम पर छोड़ दामन मेरा,
इसका अहसास नहीं है मुझको, 
ए मौत मैं तुझमें समा जाउँगा एक दिन
इसका अहसास है मुझको
मौत तुझे आना है, एक दिन 
तेरा ऐतवार है मुझको,
मुझे तेरे ऐतवार से नहीं 
जिंदगी के ऐतवार से डर लगता है। 
मौत बाहें फैलाकर मुझे जब तू बुलाएगी 
मैं तेरे आगोश में हंसता हुआ चला आऊंगा
बहाना बनाकर मौत तू न आना,
दबे पाँव चोरी छिपे से, तू न आना |
मुझे सच्चाई के चहरे से नहीं, 
बनावटी चेहरों से डर लगता है।
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है।
खंजर घौंपना तो छाती में घौंपना,
मुझे पीठ पर खंजर खाने से डर लगता है 
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है।

बात ये नहीं कि मैं 
जिंदगी की कठिन राहों पर चल नहीं सकता,
जिंदगी की कठिन राहों पर,
मैं ठोकर खाकर भी समल जाऊँगा
मुझे राहों की ठोकरों से नहीं,
मंजिलों के ठुकराने से डर लगता है। 
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है।

हर सुबह दिल में जन्म लेता है इंसान,
हर रात सिसक -२ कर दम तोड़ता है इंसान,
मुझे जीने से नहीं सुबह - शाम, जीने मरने से डर लगता है
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है।

सपने महलों में ही जन्म लेते हैं।
झोंपड़ों, फुटपातों पर तो बस "भूख जन्म लेती है। 
मुझे झोपड़ों फुटपातों की ज़िन्दगी से नहीं
मुझे तो भूखे पेट से डर लगता हैं
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है।

जिंदगी तेरी दौड़ में 
मैं थककर नहीं रुका, जिन्दगी,
जिन्दगी तेरी दौड़ में 
मेरा वतन पीछे छूट गया,
मुझे परदेस में रहने से नहीं, 
मुझे अपनी मिट्टी से 
अलग रहने से डर लगता है।
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है।

किसी कवि की यह कल्पना,
मजहब नहीं सिखाता, 
आपस में बैर रखना, 
मुझे इंसानी चेहरों से नहीं,
इंसानों के दिल में छिपे, 
भेड़ियों से डर लगता है।
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है।

मौत तू जिंदगी बनकर आए।
मुझे खुशी होगी, 
मौत अगर तू तारीख बन जाए, मुझे खुशी होगी। 
मुझे मौत तुझसे नहीं 
गुमनामियों के अंधेरों में 
मरने से डर लगता है।
मुझे मौत तुझसे नहीं 
जिन्दगी से डर लगता है।

        विपिन बंसल

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3 Comments

Swati chourasia

24-Oct-2021 07:52 PM

Very beautiful 👌

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Niraj Pandey

24-Oct-2021 12:43 AM

बहुत खूब

Reply

Zakirhusain Abbas Chougule

24-Oct-2021 12:38 AM

Nice

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