दीपक
जल मिट्टी संग मिले,
आस लिए चाॅक चले,
मिट्टी के खरीद दीए,
दीपक जलाइए।
दीए सब सजा दिए,
बिक्रय उम्मीद लिए,
सुबह से शाम हुई,
कुछ तो खरीदिए।
रात घिरने को आई,
कैसी अंधियारी छाई,
गरीब के घर भूख,
चैन कैसे पाइए।
तुलसी की आरती में,
शिव महाआरती में,
रंक की भी झोंपड़ी में,
रोशनी फैलाइए।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Mohammed urooj khan
15-Mar-2024 01:10 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Varsha_Upadhyay
14-Mar-2024 04:44 PM
Nice
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HARSHADA GOSAVI
14-Mar-2024 09:16 AM
V nice
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