Dr. Neelam

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क्यों

*क्यों*

जाना ही था तो आए क्यों
पल भर में हाथ छुड़ाए क्यों
अभी तो बात शुरु भी न की
बेबस ही आप यूं घबराए
क्यों

साँसों में ज़रा साँसें घुलने देते
लबों के जाम लबों पे छलकने देते
धड़कने तो अभी थमी ही
नहीं
पहलू से उठकर आप यूं
चल दिये क्यों

माना के जिस्त पर पहरा
समाज का
पाँवों को संस्कार की जंजीरों ने घेरा है
था डर यूं जमाने की बातों का
फिर लहराकर बाँहों में
आए क्यों

अभी तो आए पल भी न
गुजरे
जाने-जाने की रट लगाते हो क्यों
अभी तो रुख से आँचल-
ए- जुल्फ हटाई ही नहीं
समेट के दामन पहलू से
जाते हो क्यों

अधूरी आस,अधूरी प्यास
अधूरे हैं अरमां मेरे
रात भी आधी रही,आधे
ख्वाब हैं मेरे
ठहर गये जो पलभर भी
जिंदगी पूरी जी लेंगे
बस रातभर की बात है
ठहर मन बहलाते नहीं हो क्यों।

        डा.नीलम

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5 Comments

Mohammed urooj khan

15-Mar-2024 01:17 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Abhinav ji

15-Mar-2024 09:23 AM

Nice👍

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Punam verma

15-Mar-2024 08:55 AM

Nice👍

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