गर्व
गर्व न कर इस काया पर तू,
माटी में मिल जाएगी।
चार दिन का है ये जीवन,
कद-काठी जल जाएगी।
मुट्ठी मारे जग में आया,
हाथ पसारे जाएगा।
संगी-साथी मरघट तक हैं,
कोई साथ न जाएगा।
मात-पिता ने जन्म दिया है,
संग बहन-भाई खेले।
अंतिम घड़िया बुझती सांसें,
कौन कहाँ किसको भूले।
बचपन खेल-कूद में बीते,
यौवन शौक-मौज जाए।
आया बुढ़ापा जर्जर देह,
सत्कर्म की याद सताए।
माटी तन माटी मिल जाए,
मन माया का फेरा है।
सद्कर्मों से भरले दामन,
“श्री” जग रैन बसेरा है।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Mohammed urooj khan
19-Mar-2024 05:04 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
17-Mar-2024 07:22 PM
बेहतरीन
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Varsha_Upadhyay
17-Mar-2024 07:03 PM
Nice
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