Sadhana Shahi

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बोर्ड परीक्षा और माँ ( कहानी) प्रतियोगिता हेतु17-Mar-2024

दिनांक- 16,0 3, 2024 दिवस- शनिवार विषय- बोर्ड की परीक्षा और मांँ (कहानी) प्रतियोगिता हेतु

जैसे ही बच्चे कक्षा नौवीं और 11वीं पास करके दसवीं तथा 12वीं में आते हैं और उन्हें बोर्ड की परीक्षाएंँ देनी होती हैँ तब ऐसा प्रतीत होता है जैसे उन्हें बोर्ड की परीक्षा नहीं देना है बल्कि इंग्लिश चैनल को पार करना है, बोर्ड की परीक्षा न हुई कोई भयावह असुर हो गया।

किंतु उन बच्चों को यह समझना आवश्यक है कि बोर्ड की परीक्षाएंँ भी उन्हीं परिक्षाओं की तरह हैं जैसी परीक्षाएंँ वो अपने विद्यालय में देते आए हैं।

अतः बोर्ड की परीक्षाओं को एक अथाह सागर की तरह समझने की भूल कदापि नहीं कीजिए। इन परीक्षाओं को लेकर अपने मन में किसी भी प्रकार का अंतर्द्वंद्व न पैदा होने दीजिए। यदि कोई आपको बोर्ड की परीक्षा के नाम पर डराने की कोशिश कर रहा है, तो उसकी बात को बड़े ही शांति से सुन लीजिए, किंतु उसका दिया हुआ अवसाद, चिंता, कुंठा, को कदापि ग्रहण नहीं करिए।

बोर्ड की परीक्षाओं की तैयारी समय रहते सही तरीके से करिए वह दिन दूर नहीं जब सफ़लता आपके चरणों में होगी और आपको डराने वाला शर्मिंदा होगा।कोई अगर आपको डराने की कोशिश कर ही रहा है तो उसकी बात को सुनकर कदापि डरिए नहीं बल्कि यह सोचिए कि जब मैं अब तक अपने जीवन में 10, 12 परीक्षाएंँ दिया हूंँ तो इन एक, दो परीक्षाओं से डरने के क्या आवश्यकता हो सकती है।

किंतु आज के मेधावी बच्चे ही इस प्रकार से चिंता ग्रस्त, अवसादग्रस्त और कुंठाग्रस्त दिखाई पड़ रहे हैं। उन्हें हम जितना भी समझा लें कि बोर्ड की परीक्षाएंँ कोई सागर से मोती निकालने जैसा काम नहीं है। किंतु उनके अंदर बैठा हुआ डर जाने का नाम ही नहीं लेता। ऐसे में उन्हें समझाने की आवश्यकता है कि बोर्ड की परीक्षा भी वही परीक्षा है जिसे आप विद्यालय में देते आए हैं। सिर्फ़ फ़र्क इतना ही है कि आप नर्सरी से लेकर नौवीं तक की और 11वीं की परीक्षा अपने विद्यालय में देते हैं और उन कॉपियों को आपके वहीं शिक्षक जाँचते हैं जो आपको पढ़ाते हैं और दसवीं तथा 12वीं की परीक्षा आपके विद्यालय के बाहर जाकर देना होता है तथा उन कॉपियों को वो शिक्षक जाँचते हैं जो आपको नहीं जानते हैं।

तो इस बात को आपको सकारात्मक रूप से ग्रहण करना चाहिए। क्योंकि कई बार आपके शिक्षक भाई- भतीजावाद की वज़ह सेआपके साथ ईमानदारी नहीं बरत पाते हैं। लेकिन जब आपकी कॉपी एक अनजान व्यक्ति के हाथ में जाती है तब वहांँ पर आपके साथ पूरी ईमानदारी बरती जाती है। क्योंकि वह शिक्षक नहीं जानता है कि उसके हाथ में किसकी कॉपी है, अतः वह वही अंक देता है, बच्चा जिसके योग्य है।

जैसे-जैसे बोर्ड की परीक्षाएंँ करीब आती हैं वैसे-वैसे बहुत से बच्चे चिंताग्रस्त दिखाई पड़ने लगते हैं। ऐसे में उनकी माँ ही वह व्यक्ति होती है जो उन्हें उनकी चिंता रूपी सर्पिणी को दूर करने में मदद करती है। वह माँ ही होती है जो उन्हें समय-समय पर हौसला देती है, उन्हें समझाती है कि यह कोई बहुत बड़ी परीक्षा नहीं है यदि आप अपनी पढ़ाई सही तरीके से करते हैं तो इस परीक्षा को पास करना कोई दुष्कर कार्य नहीं है। इसके अतिरिक्त वह व्यक्ति माँ ही होती है जो अपने बच्चों को समय-समय पर भोजन देना, पढ़ने के लिए जगाना, पढ़ाई में उसकी मदद करना,अगर वह अस्वस्थ है तो उसकी देख-रेख करना, यदि वह कभी-कभी निराश होता है तो उसके अंदर आशावादी दृष्टिकोण जागृत करना ये सारे कार्य माँ से बेहतर और कोई नहीं कर सकता।

किंतु कभी-कभी बदकिस्मती से बच्चा सब कुछ अच्छा करता है उसके बावजूद वो बोर्ड की परीक्षाओं में अच्छे अंक प्राप्त नहीं कर पाता है। ऐसे में माँ ही वह व्यक्ति होती है जो सबसे अधिक बच्चो के साथ उनके साये सा खड़ी रहती है। वह बच्चे को हौसला देती है,वह बताती है कोई बात नहीं, अंक ही हमारी योग्यता का मापदंड नहीं हैं। और न तो कम अंक आने से जीवन समाप्त हो जाता है। अंक ही जीवन नहीं है बल्कि जीवन रहा तो हम बहुत बार परीक्षाएं देंगे बहुत बार अंक अर्जन करेंगे। इसके अतिरिक्त अंक हमारी योग्यता का मापदंड है लेकिन ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ अंक ही हमारे योग्यता को निर्धारित करते हैं क्योंकि कई बार कम अंक वाला व्यक्ति भी वह कर जाता है जिसे एक 98, 99% वाले व्यक्ति नहीं कर पाते हैं।

क्योंकि, हर बच्चों में अलग-अलग कौशल होता है। कुछ बच्चे बहुत अच्छा लिख सकते हैं, तो कुछ बच्चे बहुत अच्छा बोल सकते हैं। बोर्ड की परीक्षाओं में बहुत कुछ बच्चों के भाग्य और उनके कौशल पर ही निर्भर करता है ।और माँ ही वह व्यक्ति होती है जो बच्चों के अंदर कौशल जागृत करने में मदद करती है। तथा जीवन में कभी असफल होने पर या कम अंक आने पर जब बच्चा निराश होता है तो उसके अंदर आशा, उम्मीद का दीप जलाती है।

सीख-कभी भी बोर्ड की परीक्षा के नाम पर हमें अवसादग्रस्त या निराशावादी नहीं होना चाहिए। वरन् सकारात्मक रहते हुए उचित समय- सारणी बनाकर अध्यनरत रहना चाहिए और सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए परीक्षा को देना चाहिए। आगे जो भी होगा उसे ईश्वर की मर्ज़ी समझ कर सहर्ष स्वीकार करना चाहिए।

साधना शाही वाराणसी

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4 Comments

RISHITA

21-Mar-2024 11:41 PM

V nice

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Mohammed urooj khan

18-Mar-2024 01:32 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Gunjan Kamal

17-Mar-2024 07:24 PM

👌👏🏻

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