विश्वास की लौ
एक दूसरे की ,मन की बातों को, अपने मन में छुपा लेना और किसी तीसरे को उसकी भनक भी ना लगना, यह दो पवित्र व्यक्तियों के बीच पवित्र रिश्ता होता है , उस रिश्ते का नाम है मित्रता । कितनी पवित्र होती है मित्रता । एक दूसरे के मन की बातें, एक दूसरे की मन की कोठरी में रहती हैं । उस कोठरी के ताले की चाबी नहीं खोज सकता ,कोई तीसरा । वह मित्रता ही क्या ,जब आपकी बातें किसी तीसरे को मजा देने लगैं , याद आते हैं पुराने लोगों के सुनाएं किस्से कि लोग अपने खजाने तक का राज, अपनों को ना बता कर ,किसी दोस्त को बताते थे ,और दोस्त भी ऐसा होता, कि ना तो उसकी खजाने पर नियत बिगड़ती और ना ही किसी बड़े प्रलोभन के सामने वह खजाने का राज बताता। एक किस्सा सुना हुआ याद आ रहा है । एक साहूकार ने, अपने खजाने का राजदार अपने ईमानदार नौकर को बना रखा था । एक बार साहूकार कहीं यात्रा पर गया तो ,पीछे से लुटेरों ने उसके घर को लूटने के लिए चारों तरफ से घर को घेर लिया ,पर धनवान साहूकार के घर में उन लुटेरों को कुछ भी ना मिला , साहूकार का घर लूटने से पहले, लुटेरों को किसी ने खबर दी थी, कि साहूकार के खजाने की पूरी जानकारी साहूकार के नौकर के पास है, चोरों ने उस नौकर को पहले प्रलोभन दिया धन-संपत्ति में हिस्सा देने का। पर नौकर ने कुछ भी ना बताया ,तब तो चोरों ने उसको बहुत शारीरिक प्रताड़ना दी ,फिर भी घायल, मरणासन्न नौकर पिटता रहा पर नौकर ने अपनी जवान ना खोली । लुटेरे खाली हाथ लौट गए, जब दूसरे दिन साहूकार घर वापस आया, तो घर को अस्त-व्यस्त देख उसे सारी परिस्थिति का पता चला। तब उसने अपने खजाने को देखा ,तो वह तो सुरक्षित था,फिर कोने में दर्द से कराहते हुए मरणासन्न नौकर को देखा ,तो साहूकार को खजाने को सुरक्षित पाने की खुशी से ज्यादा ,नौकर की हालत देख कर बहुत दुख हुआ। साहूकार ने भागकर नौकर को गोद में उठाया और गांव के वैद्य के पास लेकर जाने लगा ,तो साहूकार का इन्तजार कर रहे, नौकर ने मालिक की गोद में ही प्राण त्याग दिए। नौकर के प्राण निकलते ही, साहूकार बिलख बिलख कर रोने लगा । अपने मित्र समान सेवक की मृत्यु के बाद साहूकार के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया । साहूकार ने अपनी सारी धन-संपत्ति अपने सेवक की याद को जीवंत करते हुए सामाजिक कार्यों में खर्च करनी शुरू कर दी । साहूकार ने अपने सेवक के नाम पर गांव में एक बहुत बड़ा मंदिर बनवाया और मूर्ति प्रतिष्ठा के साथ नौकर की मूर्ति की प्रतिमा भी विराजित की ,और प्रतिदिन वहां जाकर अपने सेवक की मूर्ति के पास बैठकर समय व्यतीत करता। साहूकार का सेवक केवल नौकर ही न था ,बल्कि साहूकार को पूर्ण समर्पित उसका सखा था ,बहुत छोटा था जब वह आया था । कहां से आया था ,कौन आया था उसके साथ साहूकार की सेवा में तल्लीन रहकर सेवक सब भूल चुका था । पर साहूकार के साथ जरूर उसका पिछले जन्मों का संस्कार रहा होगा । चेहरे के भोलेपन को देखकर साहूकार ने अपना सेवक नियुक्त कर लिया ,साहूकार के पास रहते हुए कभी भी उसने अपने दिनों की चर्चा नहीं की । साहूकार ने कभी उसके बारे में जानने के लिए या कभी बात करने की कोशिश की ,तो उसने सदैव कहा भगवान ने ,मेरे को केवल आपकी सेवा के लिए ही बनाया है, आपके चरणो में रहकर ही मेरे को आनंद मिलता है । बहुत याद आता है साहूकार को अपना सेवक । पूर्व जन्म के संबंधों का ही ऐसा असर था की सेवक के साथ उसका आत्मीयता का रिश्ता जुड़ गया था । साहूकार अपने सेवक पर पूरा विश्वास करता था और सेवक भी साहूकार के विश्वास को ना तोड़ने का अखंड व्रत लिए हुए था। अपने मित्र समान सेवक की मृत्यु के बाद साहूकार के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया । साहूकार ने अपनी सारी धन-संपत्ति अपने सेवक की याद को जीवंत करते हुए सामाजिक कार्यों में खर्च करनी शुरू कर दी । साहूकार ने अपने सेवक के नाम पर गांव में एक बहुत बड़ा मंदिर बनवाया और मूर्ति प्रतिष्ठा के साथ नौकर की मूर्ति की प्रतिमा भी विराजित की ,और प्रतिदिन वहां जाकर अपने सेवक की मूर्ति के पास बैठकर समय व्यतीत करता। साहूकार का सेवक केवल नौकर ही न था ,बल्कि साहूकार को पूर्ण समर्पित उसका सखा था ,बहुत छोटा था जब वह आया था । कहां से आया था ,कौन आया था उसके साथ साहूकार की सेवा में तल्लीन रहकर सेवक सब भूल चुका था । पर साहूकार के साथ जरूर उसका पिछले जन्मों का संस्कार रहा होगा ।
Babita patel
30-Mar-2024 09:53 AM
Fabulous
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Varsha_Upadhyay
23-Mar-2024 11:01 PM
Nice
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Mohammed urooj khan
22-Mar-2024 12:35 AM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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