Tabassum

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अभागन

अभागन


            भाई साहब ,आप बिलकुल सही कह रहे हैं।जीवन भर अपने पति के आने का इंतजार करते-करते अन्त में आज इस अभागन ने दम तोड़ ही दिया ।

           अनीता नाम था उसका।तीन भाईयों की इकलौती बहन थी इसलिए हर कोई इसके तमाम नाज नखरे उठाता था।शादी भी उसने अन्तर जातीय प्रेम विवाह किया था जिसे घर वालों ने थोड़ी सी ना नुकर के बाद सहज स्वीकार कर लिया था ।

           वह एक समृद्ध परिवार से आती थी जहां मुॅंह खोलते ही उसकी हर इच्छा पूरी हो जाती थी जबकि उसका पति वेदांत एक सामान्य परिवार से आता था जहां इच्छाओं को कौन पूछता है,जरूरतें ही बड़ी मुश्किल से पूरी हो पाती हैं।अभी प्रेम का बुखार नया-नया था इसलिए अनीता शुरू में दो साल तक तो अपने ससुराल में बिलकुल हॅंसी-खुशी रही परन्तु वेदान्त तो केवल उसकी जरूरतें पूरी कर सकता था।इच्छाओं का तो वैसे भी कोई अंत नहीं है।किसी की सारी इच्छाओं को कोई भी कैसे पूरा कर सकता है भला ?वेदान्त भी चाहकर भी अनीता की सारी इच्छाओं को पूरा नहीं कर पाता था।

              बेटे के जन्म के साथ-साथ बढ़ती आवश्यकताओं के अनुपात में वेदान्त की आमदनी अट्ठनी और खर्चा रूपया था।अनीता की इच्छायें सदा से ही ज्यादा थी अत: घर में कलह क्लेश बढ़ते चले गये।वह हर दिन वेदांत को ताने देती और जब-तब रूठकर मायके चली आती। 
 
            वेदांत कितनी बार उसे मान मनौवल कर अपने साथ ले गया परन्तु वह फिर कुछ महीने बाद मायके आ जाती थी।उसके मॉं और बाबूजी ने हमेशा अपनी ही बेटी का पलड़ा ऊंचा रखा।

             जब बातें मोहल्ले और रिश्तेदारों के लिए चटकारे का विषय बन जाती हैं तो फिर वह किसी को भी अच्छी नहीं लगती।बाद में अनीता के माता-पिता को खुद व अपनी बेटी की ग़लतियों का एहसास हो गया था परन्तु अब अनीता को समझाना आसान नहीं था ।

          सहनशीलता की भी एक सीमा होती है।शायद अनीता ने वह सारी सीमा लांघ दी थी।अंतिम बार जब वह वेदान्त से लड़कर मायके आयी थी तो उसका बेटा तेज बुखार में तप रहा था पर क्रोध तो विवेक का दुश्मन होता है।गुस्से ने ममता का गला भी घोंट दिया था अत: वह अपने बच्चे को उसी हाल में छोड़कर मायके आ गयी थी।वेदांत बुलाता रहा पर वह नहीं गयी।अंतरजातीय विवाह के कारण वेदान्त को उसके घर वालों ने घर से निकाल दिया था।बेचारा अकेले बेटे को लेकर रह रहा था।अकेला पिता उतने छोटे बच्चे को कैसे संभालता और पुरुषों को छोटे बच्चे को संभालने का कोई खास अनुभव भी नहीं होता अत: सही देख भालि के अभाव में आखिरकार उस बच्चे को ईश्वर ने अपने पास बुला लिया।

         बेटे को खो देने के बाद वेदांत अनीता को कभी वापस लेने नहीं आया।अनीता को जब अपनी गलतियों का एहसास हुआ तो उसने खुद जाकर भी वेदांत से माफी मांगी पर अब वेदान्त के दिल में उसके लिए कोई जगह नहीं थी इसलिए उसने उसे साथ रखना स्वीकार नहीं किया।

          अकेले रहकर अनीता अब समझ चुकी थी कि खुशी पाने का जरिया दौलत नहीं हो सकती।वह हर तीज त्यौहार पर साज श्रृंगार करके तैयार होती,नियम निष्ठा से करवाचौथ का व्रत करती थी कि आखिर कभी तो वेदांत के दिल में उसके लिए फिर से जगह बनेगी पर हकीकत में अब सब कुछ वह केवल अपने मन की सन्तुष्टि के लिए ही कर रही थी। 

           अनीता के माता-पिता की आंखों पर से जब ममता की पट्टी हटी तो उन्हें अपनी गलतियों का एहसास होने लगा था।आखिर किस मॉं-बाप को अपनी बेटी को जिंदा लाश की तरह जीवन जीते देखना अच्छा लगेगा?उन्हें भी बिलकुल ही अच्छा नहीं लगता था।मॉं बेटियों के अधिक करीब होती हैं।बेटी की ऐसी हालत उसकी मॉं शोभा से भी अधिक ज्यादा दिन तक देखा नहीं गया और वह बेटी के घर बसाने की अधूरी इच्छा लिए दुनिया से कूच कर गयी।

        अनीता न तो अब शादीशुदा थी और न ही विधवा।वह इसी आस में समय काटती रही कि एक दिन वेदांत आकर उसे ले जायेगा पर ऐसा हो नहीं सका।कुछ लोग जन्म से अभागे होते हैं परन्तु कुछ लोग अपने कर्म से अभागे बन जाते हैं।नासमझी में अपने अच्छे भाग्य को ठोकर मारकर खुद अभागे बन जाते हैं।ऐसे ही एक अभागी थी अनीता‌।अब उसके पिता को भी समझ आ गयी थी कि काश उसकी गलतियों को समय से ही रोक लिया जाता तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता।आज उसे बेटी को डोली में बिठाने के बदले उसकी अर्थी को कांधा नहीं देना पड़ता।

     वैसे तो इस घटना के बारे में जिसने भी सुना ,वह स्तब्ध रह गया पर सबसे अधिक पीड़ा अनीता के पिता को हो रही थी।वे एक पत्थर की मूरत की भांति जड़ वत हो चुके थे।आंखों से अविरल अश्रुधारा बहती जा रही थी पर अब पछताये होत क्या जब चिड़िया चुग गयी खेत।

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7 Comments

Babita patel

30-Mar-2024 09:52 AM

Amazing

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Varsha_Upadhyay

23-Mar-2024 11:01 PM

Nice

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Mohammed urooj khan

22-Mar-2024 12:38 AM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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