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ईर्ष्या

संयम और अनुशासन का,

जहां होता है अभाव ।

निंदा,जलन और डाह का ,

वहीं होता प्रादुर्भाव।

भाई भाई को लड़वा दे ,

सारी मर्यादा भुलवा दे।

बीज बैर का मन में बोके।

घर में महाभारत करवा दे।

जिसके मन में घर कर जाए,

वह कभी सुखी नही रहता ।

सब कुछ पाकर वह दुखी रहे,

खुशियां देख कर औरों की जलता।

इर्ष्या जिसके मन में पनपे ।

वहां अंहकार बढ़ जाता है

वह मनुज क्रोध की अग्नि ,

भीतर ही भीतर जलता है।

रूबी चेतन शुक्ला

अलीगंज

लखनऊ

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5 Comments

RISHITA

24-Mar-2024 06:29 PM

👍👍👍👍

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HARSHADA GOSAVI

24-Mar-2024 05:59 PM

👌👌👌👌👌

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kashish

24-Mar-2024 11:11 AM

Amazing

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