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हद

हद कहाँ??

कोई नहीं चाहता,
मुझे हद से ज्यादा!
चार दिन का शोक है,
बस ज्यादा से ज्यादा!!
पड़ी है लाश कफ़न में लिपटी,
सब शोकाकुल नज़र आ रहे हैं,
कुछ आँसू करते हैं दिखावा,
कुछ दिल से दर्द बहा रहे हैं,
बरछी चलाई तानों की निशदिन,
वही नहला-धुला कर सजा रहे हैं,
नहीं हाल-चाल पूछने का वक्त,
आज वक्त ही वक्त दिए जा रहे हैं!
धड़कता था दिल जिनके लिए,
वे धड़कन कभी सुन ही न पाए,
अनजान रहे ता-उम्र जज़्बात,
वे दिल में कभी झांक ही न पाए!
लगता है उन्हें कुछ याद आ रहा है,
चेहरे पर सुकून या ग़म छा रहा है,
दूर थे जो धड़कनों की जुबां से,
लगता है शायद दिल धड़का रहे हैं!
कुछ-कुछ ग़मगीन नज़र आ रहे हैं!
मेरे जाने का ग़म या सुकूं बंधनों से,
वे एकटक बस निहारे जा रहे हैं,
सिमट गया दर्द आँखों में छिपकर,
वे बस सर को झुकाए जा रहे हैं!
हिलाया किसी ने देर हो रही है,
ले जाने की जल्दी मच रही है,
सजा दी आज मांग फिर से मेरी,
अंतिम रस्म है अदा कर रहे हैं!
चार कंधों पर सजा के अर्थी,
अंतिम विदाई सब मुझे दे रहे हैं!
दूल्हे के संग चले सब बाराती,
मुक्तिधाम पर जा रुकी सवारी,
धू-धू चिता जला कर मेरी।
अंतिम आहुति दिए जा रहे हैं!
मुक्त हो गए सब रिश्ते बंधन,
नहाए-धोए शुद्ध हो रहे हैं,
धोय-पौंछ घर साफ कर लिया,
खिला कर भोजन ब्राह्मणों को,
यादों को भी विदा कर रहे हैं!
फोटो एक बना कर मेरा,
उसको हार पहना दिया है,
कभी सदस्या थी इस घर की,
तस्वीर दिखा कर भ्रमित कर रहे हैं,
गुजर गए दिन साल महीने,
सबने मुझको भुला दिया बस!!
खट्टे-मीठे कुछ पल बीते,
जिन साजन की बाहों में,
वे बाहें अब बन गईं तकिया,
नववधू छुई मुई कन्या का,
सात जन्म का रिश्ता टूटा,
मुझको मुक्तिधाम मिला!
हद की चाहत का हद से ही,
“श्री” हद तक उन्माद मिला!!!

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 


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6 Comments

Gunjan Kamal

10-Apr-2024 02:51 PM

बहुत खूब

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जी अत्युत्तम प्रस्तुति।

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Varsha_Upadhyay

29-Mar-2024 11:35 PM

Nice

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