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स्मित

बचपन!

कुछ पल!
बारिश में भीगते,
उछलते कूदते दौड़ते,
पानी में छपाक छई,
नहाते हुए गीले कपड़े,
सालों-साल पीछे ले गए!
खो गई अतीत के मासूम,
मीठे सुहाने बेपरवाह सपने,
निश्छल सी मुस्कान लबों पर,
देर तक खिलती मचलती रही!
एक दम से चौंक कर ध्यान भंग,
दूध पतीले से बहता हुआ,
रसोई स्लैब पर बिखर गया!
गैस भी दूध के बहाव से बुझ गई!
बचपन का ख्वाब एकदम से खो गया,
वर्तमान में वापस लौट कर,
सच्चाई के आईने में खुद को आंका,
चेहरे की प्यारी स्मित को परे हटाया,
बिखरा दूध मुंह चिड़ा रहा था,
लापरवाही की याद दिला रहा था,
गैस की नाॅब बंद कर पोछा उठाया,
बिखरा दूध साफ किया!
बच्चे सड़क पर बारिश में,
अभी भी धमा-चौकड़ी मचा रहे थे!
मैं अब भी बचपन जी रही थी,
किन्तु वर्तमान में मुस्करा रही थी!!

स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान) 

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7 Comments

Gunjan Kamal

30-Mar-2024 10:06 PM

बहुत खूब

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Gobind Rijhwani "Anand"

30-Mar-2024 09:35 AM

बहुत बढ़िया 👌👌👌👌👍

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Punam verma

30-Mar-2024 08:16 AM

𝗩𝗲𝗿𝘆 𝗻𝗶𝗰𝗲👍

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