छड़ीमार होली गीत स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु30-Mar-2024
दिनांक- 30,03, 2024 दिवस- शनिवार विषय-छड़ीमार होली गीत स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु
होली की धूम देखो आई, सारे जग में है छाई तरुणाई। भारत में छाई, गैरभारत में छाई, फुलेरा दूज से यह मन जाई। सारे—–
दूज फुलेरा में फूलों की होली, लड्डू मार, लट्ठमार गली और खोली। लट्ठ से मार खाएंँ निकले न बोली, हुरिआइन मारें हुरियों की टोली। लड्डू ——
लट्ठमार होली है व्रज में सुहाए, गोकुलवासी को छड़ीमार होली भाए। फागुन महीना है शुक्ल पक्ष, द्वादशी, छड़ी मार होली की धूम मच जाए। गोकुलवासी —–
ग्वाल- बाल जो भी कान्हा रुप आएंँ, गोपियांँ उन पर छड़ी बरसाएंँ। नटखट कान्हा की याद इससे आती, हंँसी- ठिठोली की बौछार कर जाएंँ। गोपियांँ —–
फूलों से नाज़ुक कान्हा हमारे, लट्ठ से हम भला कैसे मारें? नाजुक सी छड़ी बदन बरसा रे, मुरलीधर सबके हैं आंँखों के तारे। लट्ठ से—-
यमुना किनारे एक नंद किला था, ठाकुरजी की प्रतिमा जिसमें धरा था। राजभोग का भोग लगता था, मनभावन पालकी कान्हा का सजता था। ठाकुरजी —-
दूध ,दही ,मक्खन कान्हा को खिलाएंँ, काजू, बादाम संग लस्सी पिलाएंँ। छड़ीमार होली की छटा छितराएंँ , गोकुल के जन-जन हिया न समाएंँ। काजू, बादाम —–
गोपी को कान्हा को रंग है लगाना, हंँसी-खु़शी का है आया ज़माना। सतरंगी आभा ले गोपियांँ आईं, दिलों के तमस को है इससे मिटाना। हंँसी-खुशी——–
नाम छड़ीमार है बरसाता प्यार है, अद्भुत,अनोखा ,सलोना त्योहार है। छड़ीमार होली में जो भी है आता, सबके दिलों का मैल धुल जाता।
दिलों के मैल जो जन ना धो पाएँ, होली का उत्सव वो ना ही मनाएँ। प्रकृति के रंग में ख़ुद को जो रंग ले, होली का भेद वही जान पाएँ।
साधना शाही, वाराणसी
Gunjan Kamal
10-Apr-2024 02:58 PM
बहुत खूब
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Varsha_Upadhyay
31-Mar-2024 11:00 PM
Nice
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Babita patel
31-Mar-2024 02:24 PM
Amazing
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