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जैसा कर्म वैसा फल लेखनी प्रतियोगिता -31-Mar-2024

शीर्षक:-जैसा कर्म वैसा फल

      बहुत पुराने समय की बात है उस समय टेलीफोन  व मोबाइल  नहीं थे। उस समय समाचार  आदान प्रदान  का साधन पोस्ट  आफिस द्वारा ही सम्भव  था पोस्ट  आफिस द्वारा चिट्ठी अथवा टेलीग्राम आता था।

      उस समय एक गाँव में दो दोस्त  रहते थे।एक ब्राह्राण  दूसरा बणिक था। ब्राह्राण  का नाम राममूर्ति था व  वणिक का नाम  धर्म पाल  था। वह दोनों ही क्वारे थे।एक दिन धर्म  पाल ने राममूर्ति से कहा,"  दोस्त  चलो किसी बड़े  शहर में जाकर  कोई  ब्यापार करते हैं। तेरी अक्ल और मेरा पैसा। जो फी मुनाफा होगा वह आधा आधा होगा।

     राम मूर्ति इसके लिए तैयार  होगया और वह दोनों मुम्बई  आगये ।वहाँ दोनों ने नील का ब्यापार किया। ईश्वर  की कृपा से खूब कमाई  होने लगी।  अच्छी कमाई  देखकर धर्म पाल  के दिल में बेईमानी का बीज उग आया। धर्म पाल  ने अपने दिल में सोचा राम मूर्ति को मुनाफे का हिस्सा क्यौ दूँ ? रुपया तो मेरा लगा है ? और वह बीज पनपता ही गया।

     धर्म पाल  ने राम  मूर्ति को धीमा जहर( स्लो पाइजन ) देना शुरू कर दिया। कुछ ही दिनों में जहर ने अपना असर दिखाना शुरू दिया। राम मूर्ति की तबियत  खराब रहने लगी। धर्म पाल  ने चालाकी दिखाते हुए  राम मूर्ति के घर उसकी बीमारी का एक टेलीग्राम  भेज दिया। अब राम मूर्ति की बीमारी ज्यादा बढ़ने लगी। और राम मूर्ति को अस्पताल  में भर्ती कराना पड़ा।  इसका दूसरा  टेलीग्राम  भी राम मूर्ति के घर भेज दिया।

       कुछ  दिन बाद  राम मूर्ति स्वर्ग  सिधार  गया। और इसका टेलीग्राम  भेजकर राम  मूर्ति का अंतिम  संस्कार  कर दिया क्यौकि राम मूर्ति के  माता पिता मुम्बई  आने में अस्मर्थ थे।

      धर्म पाल  ने चालाकी दिखाते हुए ईमानदारी का नकाब ओढ़कर कुछ  पैसे राम मूर्ति के माता  पिता को देकर पल्ला झाड लिया। वह सबकी नजरौ में एक ईमानदार  ब्यक्ति बन गया।

     इसके  बाद  धर्म पाल  ने शादी करली और मुम्बई में पत्नी के साथ   रहने लगा। वहाँ  उसके एक बेटा हुआ। धर्म पाल  ने बहुत  खुशियां मनाई। समय  पंख लगाकर  दौड़ता रहा। धर्म पाल  का बेटा दस ग्यारह  वर्ष  का होगया।धर्म पाल  राम  मूर्ति  को बिल्कुल  भूल गया था।

      धर्म पाल  का बेटा यकायक  बीमार  होगया और उसका बहुत  इलाज  कराया गया। धर्म  पाल का बहुत  पैसा खर्च  होने लगा। 

     एक दिन उसका बेटा अपनी आँखे लाल करते हुए  बोला," धर्म पाल  तू जानता है मैं कौन हूँ।"

    " तू मेरा बेटा मुकेश है? तू मुझसे ऐसे कैसे बात कर रहा है?", धर्म पाल  ने जबाब  देते हुए  पूछा।

         "हा! हा! हा! हा! " ,वह हसते हुए  बोला," मै तेरा बेटा नहीं हूँ! मैं तेरा दोस्त  राम मूर्ति हूँ जिसे तूने जहर देकर मार दिया था। मैं जब से तेरे घर पैदा हुआ  हूँ तब से आजतक जो खर्चा हुआ  है वह सब मेरे हिस्से का है। अब केवल मेरे कफन व अंतिम संस्कार  के पैसे बचे हैं हिसाब  लगा लेना। धर्म पाल यहाँ जो जैसा कर्म करता वह वैसा ही फल भोगता है यही सत्य है।" इतना कहकर  उसने अंतिम  सांस ली।

         धर्म पाल  खड़ा  देखता रहा वह कुछ  नहीं कर सका। अब उसकी समझ में आगया था कि हम सब अपने अपने कर्मौ का फल भोग रहे हैं।

    श्री गोस्वामी तुलसीदास  जी ने भी रामचरितमानस  में कहा है:-

" कर्म  प्रधान  विश्व करि राखा ।
 जो जस करहि सो तस फल चाखा।।"
     अर्थात  हम जैसा कर्म  करते है हमें वैसा ही फल मिलता है जैसे हम यदि बबूल का पेड़ लगायेंगे तो हमें आम नहीं कांटे ही मिलेंगे।

आज की दैनिक  प्रतियोगिता हेतु।
नरेश  शर्मा " पचौरी "

      

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7 Comments

Babita patel

07-Apr-2024 11:29 AM

V nice

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Mohammed urooj khan

01-Apr-2024 02:44 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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HARSHADA GOSAVI

01-Apr-2024 09:50 AM

Amazing

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