मित्रता
मित्रता है अनमोल जगत में, प्रेम विश्वास जगाए जन में।
दोस्ती सोच समझ कर करिए, दरार न पड़े ध्यान रखिए।
दोस्त श्रीकृष्ण जैसा रखिए, सच्चाई पर अग्रसर रहिए।
कृष्ण बने अर्जुन के सारथी, अर्जुन रहे सतत निस्वार्थी।
न्याय युद्ध का पाठ पढ़ाया, अर्जुन में तब साहस आया।
हर विपदा में साथ निभाया, कदम कदम पर कृष्ण को पाया।
दोस्ती कर्ण दुर्योधन करली, अनीति उसने राह पकड़ ली।
मित्रता रसातल पहुँच गई, कर्म अधर्म छाप छोड़ गई।
मित्रता हो सूरज दीपक सी, कृष्ण सुदामा साधक जैसी।
स्वार्थ लेशमात्र न आए, तीन लोक स्वामी कहलाए।
आसन छोड़ दौड़ते आए, कृष्ण सुदामा गले लगाए।
मित्रता एक मिशाल हो गई, युग युग में आबाद हो गई।
पृथ्वीराज चंद्रवरदाई, "श्री" शासक एक कवि कहाई।
इक साथ मौत गले लगाई, यारी खूब निभाई भाई।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Gunjan Kamal
11-Apr-2024 12:27 AM
शानदार
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Punam verma
01-Apr-2024 09:02 AM
Very nice👍
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Babita patel
01-Apr-2024 08:57 AM
V nice
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