प्रण
दूर हटाकर ख़ामोशी को,
पल खुशियों के तलाश कर लें।
सरगोशी कर रहीं बयारें।
झोली में कुछ खुशबू भर लें।
सुलझा लें आपस के झगड़े,
शक के घेरे मिट जाएंगे,
मीठे हो जाएंगे रिश्ते,
मन के कलुष पिघल जाएंगे।
किसकी गलती किसके सर है,
तकरार से क्या हो हासिल,
अवसर मिल जाए चिंतन का,
बन पाएगा तब तू फ़ाजिल।
कड़वाहट मन में मत रखिए,
बेचैनी बढ़ती जाएगी,
क्षमावान रखिए अंतस को,
सुख-शान्ति से कट जाएगी।
अपना भूलें नहीं दायरा,
गरिमा का भी लिहाज़ रखिए,
लघुता के वश हो मत जाना,
बेइज्जत होने से डरिए।
मुरली अरु पायल का बंधन,
कर्ण सुनें पैरों में थिरकन,
होश नहीं कब बिखरी झांझर,
एक हुई धड़कन से धड़कन।
मुरली से गुण गाहक बनिए,
फूंके कुंजन गुंजन लहरी,
मधुर रसन करती है निश-दिन,
“श्री” मुरली धर के अधर धरी।
स्वरचित-सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Mohammed urooj khan
16-Apr-2024 12:30 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
03-Apr-2024 09:15 AM
बहुत खूब
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HARSHADA GOSAVI
02-Apr-2024 08:13 PM
Nice
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