एक बूंँद (कविता) प्रतियोगिता हेतु -06-Apr-2024
दिनांक 06,04, 2024 दिवस- शुक्रवार प्रदत्त विषय- एक बूंँद प्रतियोगिता हेतु
ममता की इक बूंँद से ही दिल होता गुलज़ार, उस इक बूंँद के बिन ही जीवन बनता थार।
आंँखों से टपके जब बूँदें दिल पर पड़ता मार, प्रेम की मीठी दरिया सूखे चहुँ बहता है खार।
हाथी, घोड़ा, बंगला, गाड़ी सब लगता बेकार, अपना ही जब दगा दे जाए दिल करता हाहाकार।
स्वाती की इक बूंँद की खा़तिर पीहा रहता बेकरार, एक बूंँद को पी करके वह तृप्ति पाता अपार।
एक-एक एक बूंँद ही बह-बहकर खाली कर देता जार, अपने एक-एक श्वेद बूंँद से कृषक है करता प्यार।
मेघा की एक-एक बूंँद से ग्रीष्म तपिश जाए हार, यही बूंँद यदि नहीं पड़े तो मच जाता हाहाकर।
अमिय की एक ही बूंँद मिले तो अमरता आती द्वार, प्रेम की एक- एक बूंँद की खातिर तरसे है संसार।
नयनों की एक-एक बूँदें ही देती चिंता अग्नि में डार, त्याग, तपस्या, की एक-एक बूंँद से खुश होता है परिवार।
औषधि की बस एक बूंँद ही रोग पर करती वार, एक- एक बूंँद की क़ीमत समझो बस यही कविता का सार।
साधना शाही, वाराणसी
Mohammed urooj khan
16-Apr-2024 10:51 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
08-Apr-2024 07:57 PM
👌🏻👏🏻
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Varsha_Upadhyay
07-Apr-2024 09:49 PM
Nice
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