नीति-वचन-5
नीति-वचन*-5
सीतल-मंद-सुगंध समीरा।
संत-प्रकृति जस निर्मल नीरा।।
बचनइ संत प्रेम-रस पागी।
मिलै न अवसर श्रवन अभागी।।
इक-इक बचन संत अनमोला।
धन अरु संपति सकैं न तौला।।
सत्संगति सुख देइ अपारा।
मेटवइ भव-संकट,अघ-भारा।।
माया-मोह,बिरत अभिमाना।
संत-समागम,ग्यान-निधाना।।
निंदा-स्तुति नहीं प्रभावा।
इषना बिगतइ संत-सुभावा।।
स्थिर चित्त-सांत मन संता।
निरबल जनहिं सहाय तुरंता।।
दोहा-संत-बचन अह मंत्र सम,मंत्र बसी भगवान।
सुमिरि-सुमिरि संकट कटै,होय जगत-कल्यान।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Mohammed urooj khan
16-Apr-2024 10:40 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Gunjan Kamal
08-Apr-2024 08:07 PM
बहुत खूब
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Varsha_Upadhyay
07-Apr-2024 10:01 PM
Nice
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