नीति-वचन-7
*नीति-वचन*-7
परम पुनीत काजु सेवकाई।
सेवा-भावहिं मिलै बड़ाई।।
निरबल-रोगी-संतन्ह-सेवा।
जे जन करहिं उ पावैं मेवा।।
गंग-घाट-सेवा हरिचंदर।
करि भे नामी एक नृपेंदर।।
जोगी-जती-तपस्वी-ग्यानी।
सुर-मुनि औरउ जे जन ध्यानी।।
सेवा-ब्रत कै करैं बखाना।
सेवा-करमइ करम प्रधाना।।
निरबल-सेवा जे जन करहीं।
प्रभु-प्रसाद कै भागी भवहीं।।
सकल सास्त्र अरु बेद-पुराना।
भाव एक बस सेवा माना ।।
तजहु दर्प अरु करउ समर्पन।
भवहि न सेवा बिनु मन अर्पन।।
करहिं न सेवा जन अभिमानी।
सेवा समुझहिं नहिं अग्यानी।।
सेवा-साफ-सफाइ-सुझावा।
पाइ आव मन उत्तम भावा।।
एहि तें धरम न औरउ दूजा।
सेवा-भाव,स्वच्छता पूजा।।
सेवा-भावहिं प्रति अनुरागा।
यहि मा जाकर चित रह लागा।।
तासु जनम जग सुफल कहावै।
परम-धाम-सुख अस जन पावै।।
दोहा-पर-पीड़ा-दुख दूर करि,होय चित्त महँ तोष।
चहिअ सेवा करन जग,प्रभुहिं पे राखि भरोस।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Mohammed urooj khan
16-Apr-2024 10:59 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Reyaan
11-Apr-2024 06:04 PM
Nice
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Shnaya
11-Apr-2024 04:49 PM
V nice
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