Vinita gupta

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दाग

श्वेत चुनरिया ओढ़ के निकली, कोई नहीं था दाग।
कर्मों का फल मिलता कैसे, सोच रही चुपचाप।
करती हूं आराधन प्रभु का,
सुंदर साज सजाए,
कभी बजाई वीणा धुन पर,
और सितार बजाए,
स्वर्ण पायलिया बांध के चल दी, घुघरूं बाजें आप।
कर्मों का फल मिलता कैसे,सोच रही चुपचाप।।
कर्म सुकर्म चुने थे मैने,
प्रभू मिलन की आस,
भव सागर से तर जाउंगी,
पूरा था विश्वास,
प्रेम नगर की राह पकड़ ली, खो गई मैं दिन रात।
कर्मों का फल मिलता कैसे, सोच रही चुपचाप।।
लिप्त हुई अब काम वासना ,
भूल गई मैं ईश वंदना,
पल पल मनवा चैन न पावे,
फल पड़ा है मुझे भुगतना
कोरी चुनरिया मैली हो गई,
रही न अब बेदाग।
कर्मों का फल मिलता कैसे, सोच रही चुपचाप।।
श्वेत चुनरिया ओढ़ के निकली, कोई नहीं था दाग।।
विनीता गुप्ता छतरपुर मध्य प्रदेश स्वरचित मौलिक 
आज की प्रतियोगिता हेतु विषय दाग दिनाँक 09/4/2024

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7 Comments

Mohammed urooj khan

16-Apr-2024 11:24 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Reyaan

11-Apr-2024 06:17 PM

Nice

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Shnaya

11-Apr-2024 04:36 PM

V nice

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