गणगौर व्रत (कहानी)11-Apr-2024
गणगौर व्रत (कहानी)
हिंदू धर्म में पति के आरोग्यता ,दीर्घायु ,सुख- समृद्धि, आदि हेतु तथा स्वयं के अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हेतु वट सावित्री व्रत , हरितालिका तीज व्रत, करवा चौथ का व्रत आदि की भांँति ही गणगौर व्रत भी किया जाता है।
*गणगौर शब्द गण और गौर दो शब्दों के योग से बना है। गण का अर्थ है भगवान शिव और गौर का अर्थ है माता पार्वती। इस प्रकार गणगौर शब्द का अर्थ हुआ शिव और पार्वती। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि गणगौर पूजन का दिन शिव और पार्वती के पूजन का दिन है।
*गणगौर व्रत होलिका दहन के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा से लेकर चैत्र शुक्ल तृतीया तक 18 दिन चलने वाला त्यौहार है। लोगों का ऐसा मानना है कि माता गरबजा होलिका के अगले दिन चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को अपने मायके आती हैं 17 दिन बाद चैत्र शुक्ल तृतीया को 18वें दिन भगवान भोलेनाथ उन्हें लेने आते हैं। उसी दिन गणगौर व्रत किया जाता है 2024 में गणगौर व्रत 11अप्रैल गुरुवार को किया जाएगा।
*वैसे तो मुख्य रूप से गणगौर व्रत सौभाग्यवती स्त्रियांँ ही करती हैं किंतु इसके अतिरिक्त कुंँवारी लड़कियांँ भी मनवांछित वर प्राप्त करने के लिए इस व्रत को करती है
*मारवाड़ी समुदाय के लोग इस व्रत को विशेष रूप से करते हैं।राजस्थान सिर्फ़ ऐतिहासिक किलों, समृद्ध इतिहास और खूबसूरत पर्यटन स्थलों के लिए ही नहीं वरन विविधता में लिपटे हुए यहांँ के पर्व , व्रत भी लोगों को अपनी तरफ़ आकर्षित करते हैं। भारत ही नहीं विश्व के पर्यटन मानचित्र में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले राजस्थान के व्रत, पूजा परिधान आदि इसे विशिष्टता प्रदान करते हैं। इन्हीं विशिष्टता प्रदान करने वाले व्रतों में एक महत्वपूर्ण व्रत है गणगौर ,जो शिव और पार्वती को समर्पित है। राजस्थान के अलावा यह व्रत मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश के- निमाड़, मालवा, बुंदेलखण्ड और ब्रज क्षेत्रों में भी हर्षोल्लास के साथ किया जाता है ।
होलिका दहन के अगले दिन अर्थात् गणगौर पर्व के प्रथम दिन महिलाएंँ गाते- बजाते खुशियांँ मनाते हुए होलिका की राख अपने- अपने घर ले आती हैं। उस राख में मिट्टी मिलाकर उससे सोलह पिंडियां बनाईं जाती है। साथ ही दीवार पर सोलह बिंदियांँ कुंकुम की, सोलह बिंदियाँ, मेहंदी की और सोलह बिंदिया काजल की प्रतिदिन लगाई जाती है। गणगौर पर्व के सभी दिन मांँ पार्वती की स्तुति का सिलसिला चलता रहता है। अंतिम दिन भगवान शिव की प्रतिमा के साथ सुसज्जित हाथियों, घोड़ों का जुलूस और गणगौर की सवारी निकाली जाती है जो आकर्षण का केंद्र बन जाती है।
राजस्थान पर्यटन विभाग भी इस गणगौर पर्व में अपनी महती भूमिका निभाता है। उसके सौजन्य से ही प्रतिवर्ष मनाए जाने वाले इस उत्सव में देश से लेकर विदेश तक के लोग शामिल होते हैं ,और इस उत्सव की शोभा को बढ़ाते हैं। इस व्रत के बारे में कहा जाता है कि स्त्रियांँ पति को बिना बताए मायके में करती हैं। चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा को एक चौकी पर गणगौर की प्रतिमा को स्थापित किया जाता है यह प्रतिमा लकड़ी की बनी होती है ।इस प्रतिमा को नए-नए वस्त्र, आभूषण से यथाशक्ति खूब सजाया सजाया जाता है। फिर उस प्रतिमा की शोभायात्रा निकाली जाती है। शोभायात्रा में शामिल लोगों के वस्त्र भी नए और रंग-बिरंगे होते हैं ।
नाथद्वारा में यह शोभायात्रा 7 दिनों तक लगातार निकाली जाती है। गणगौर के अवसर पर आम जनता जिनके पास रंग-बिरंगे परिधान नहीं होते हैं उनके परिधान निःशुल्क रंगे जाते हैं। ऐसा कहा जाता है कि राजस्थान के राजघरानों में रानियांँ और राजकुमारियांँ प्रतिदिन गवर (माता गौरी) की पूजा करती थी। पूजा के स्थान पर दीवार पर ईसर (शिव) और गवरी (गौरी) के भव्य चित्र अंकित कर दिए जाते थे। ईसर के सामने गवरी हाथ जोड़े बैठी रहती थीं। ईसर जी काली दाढ़ी और राजसी पोशाक वीर तेजस्वी पुरुष के रूप में अंकित किए जाते थे।
*गणगौर व्रत निर्माण के तरीके से किया जाता है- 1- सर्वप्रथम चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सूर्योदय से पूर्व ही नहा कर गीले कपड़ों में ही पवित्र स्थान पर एक टोकरी रखकर उसमें जवारे बोना शुरू कर देना चाहिए। इन जवारों को बोते समय स्वच्छता का पूरा ध्यान देना चाहिए। क्योंकि इन जवारों को शिव और पार्वती का रूप माना जाता है।
2- जिस दिन जवारे बोना शुरू करें उस दिन से विसर्जन के दिन तक व्रत रखने वाली स्त्री या कन्या को सिर्फ़ एक समय ही भोजन तथा सिर्फ एक ही बार दूध ग्रहण करना चाहिए।
3- जवारे बोने से लेकर विसर्जन के दिन तक दोनों समय शिव पार्वती का विधि- विधान से पूजा अर्चना करना चाहिए।
4- गणगौर व्रत के दिन गौरी, उमा, लतिका, सुभागा, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, भोग वर्द्विनी और अम्बिका,मांँ गौरी के सभी रुपों की पूरी श्रद्धा व आस्था के साथ पूजा करनी चाहिए।
5- गौरीजी की इस स्थापना पर सुहाग की सारी वस्तुएंँ जैसे-कांँच की चूड़ियांँ, सिंदूर, महावर, मेहंँदी, टीका, बिंदी, कंघी, शीशा, काजल आदि अवश्य चढ़ाया जाता है।।
6-यहांँ इस बात का ध्यान रखना परम आवश्यक है कि सुहाग की सभी सामग्रियों को धूप, दीप, नैवेद्य, ऋतु फल, फूल, चंदन आदि से विधिपूर्वक पूजन करने के पश्चात ही माता गौरी को अर्पित करना चाहिए।
7- चैत्र शुक्ल द्वितीया को माता गौरी को तालाब में स्नान कराना चाहिए।
8- तृतीया के दिन भी सर्वप्रथम स्वयं स्नान करें फिर शिव- पार्वती को स्नान कराकर सुंदर वस्त्र -आभूषण पहना कर पालने को सजाकर पालने में शिव पार्वती को बैठा देना चाहिए।
9- विधिपूर्वक पूजा अर्चना करने के पश्चात माता गौरी और शिव से जुड़ी कथा सुनना चाहिए।
10- कथा पूर्ण होने के पश्चात माता गौरी को चढ़ाए हुए सिंदूर से प्रत्येक सुहागन स्त्री को अपनी मांँग भरनी चाहिए।
*चूंँकी यह व्रत सिर्फ़ महिलाओं और कन्याओं के द्वारा अखंड सौभाग्य अथवा मनवांछित वर की प्राप्ति हेतु किया जाता है। अतः गणगौर का प्रसाद इस खास पूजन का फल समझा जाता है । यही कारण है कि यह प्रसाद पुरुषों को कदापि नहीं देना चाहिए।
गणगौर व्रत की कथा
जनश्रुति के अनुसार एक बार भगवान शंकर ,माता पार्वती और नारद टहलते हुए चैत्र मास, शुक्ल पक्ष की तृतीया को एक गांँव में पहुंँचे। उनका आना सुनकर उस गांँव की निर्धन स्त्रियांँ तथा कन्याएँ थाली में हल्दी, अक्षत लेकर उनके पूजन हेतु पहुंँची। माता पार्वती उनके पूजन से प्रसन्न होकर सारा पूजा भाव, सारा सुहाग रस उन महिलाओं तथा कन्याओं के ऊपर छिड़क दीं जिससे उन्हें अटल सौभाग्य की प्राप्ति हुई।
धनाढ्य स्त्रियांँ जब शंकर, पार्वती और नारद जी के आने के बारे में सुनीं तब वो तरह-तरह के पकवान बनाने लगीं। इस तरह पकवान बनाने में काफ़ी देर हो गई पकवान बनाने के पश्चात उसी गांँव की धनाढ्य स्त्रियांँ नए-नए वस्त्र आभूषण से सुसज्जित होकर पूजा की थाली को फल- फूल से सजाकर शिव पार्वती के सम्मुख पूजा करने हेतु उपस्थित हुईं। इन धनाढ्य स्त्रियों को देखकर देवाधिदेव महादेव ने माता पार्वती से कहा- “तुमने सारा सुहाग रस तो निर्धन स्त्रियों में वितरित कर दिया अब तुम इन्हें क्या दोगी?
जब बाद में आए स्त्रियों ने अपनी पूजा समाप्त कर ली तब माता पार्वती ने अपनी अंगुली को चीरकर उसके रक्त को उनके ऊपर छिड़क दिया जिन- जिन स्त्रियों के ऊपर उनके रक्त के छींटे पड़े उन्होंने माता पार्वती की ही भांँति अखंड सौभाग्य को प्राप्त किया।जिन- जिन स्त्रियों पर माता पार्वती के खून के छींटे पड़े उनसे माता पार्वती ने कहा- “तुम सब अपने वस्त्र- आभूषण ,शानो- शौकत को त्याग कर माया मोह से रहित हो जाओ, और तन, मन, धन से अपने पति की सेवा करो इस प्रकार के कर्म से तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति
निर्धन तथा धनाढ्य दोनों स्त्रियों को सुहागरस देने के पश्चात माता पार्वती अपने पति भगवान भोलेनाथ से आज्ञा लेकर सरोवर में स्नान करने चली गईं। वहांँ स्नान करने के पश्चात माता पार्वती ने मिट्टी से शंकर भगवान की मूर्ति बनाकर उनका विधिवत पूजन किया, मस्तक पर टीका लगाया और प्रसाद ग्रहण किया। माता पार्वती की इस प्रकार की अनन्य भक्ति को देखकर भगवान भोलेनाथ उस पार्थिव लिंग से प्रकट हुए और पार्वती जी को वरदान दिए कि आज के दिन जो भी स्त्री मेरा और तुम्हारा पूजन एक साथ करके व्रत करेगी उसका पति चिरंजीवी होगा और उन पति-पत्नी दोनों को मोक्ष की प्राप्ति होगी । इस तरह का वरदान देने के पश्चात् भगवान भोलेनाथ वहांँ से अंतर्ध्यान हो गए।
अपनी पूजा अर्चना को समाप्त कर माता पार्वती वहांँ पहुंँचीं जहांँ वो भगवान शंकर और नारद जी को छोड़ कर आई थी। किंतु पूजा – पाठ करने में माता पार्वती को काफ़ी देर हो गया था इसलिए शिव जी ने माता पार्वती से उनके देर से आने का कारण पूछा तब पार्वती बोलीं- मेरे भाई ,भावज नदी के किनारे मिल गए थे उन्होंने मुझसे दूध -भात खाने तथा उनके यहांँ कुछ क्षण रूकनेको कह दिया इसी कारण आने में विलंब हो गया।
माता पार्वती के मुखारविंद से इस प्रकार की बात सुनने के पश्चात भगवान भोलेनाथ भी दूध-भात खाने के लालच में नदी के तट पर चल दिए। माता पार्वती मन से भगवान शिव को याद करने लगी l हे भगवान! आप मेरी लाज रखिएगा। भगवान भोलेनाथ और नारद मुनि आगे- आगे चल रहे थे माता पार्वती प्रार्थना करते हुए उनके पीछे- पीछे चल रही थीं। तभी कुछ दूर नदी के किनारे पर माता पार्वती को एक माया का महल दिखाई दिया महल के अंदर शिव जी के साले तथा सरहज विराजित थे ,उन्होंने शिव जी का भव्य स्वागत किया शिवजी ने उनका आतिथ्य ग्रहण किया। शिवजी वहाँ दो दिन रहे तीसरे दिन पार्वती शिवजी से चलने को कहीं, तो भगवान शिव चलने को तैयार नहीं हुए तब पार्वती जी रूठकर अकेले ही चलती रहीं। ऐसी परिस्थिति में भगवान शिव को भी पार्वती के साथ चलना पड़। नारद जी भी उनके साथ में चल दिए चलते-चलते भगवान शंकर बोले मैं तुम्हारे मायके में अपनी माला भूल गया हूंँ।
माता पार्वती माला लाने हेतु तैयार हो गई किंतु भगवान भोलेनाथ माता पार्वती को वापस न भेजकर नारद मुनि को माला लाने को भेजे। परंतु यह क्या !यहांँ तो महल है ही नहीं दूर- दूर तक जंगल ही जंगल, घना अंधकार छाया हुआ है ,जहांँ पर हिंसक पशु- पक्षियों का बसेरा है ऐसे वातावरण को देखकर नारद मुनि आश्चर्यचकित रह गए।
तभी अचानक आकाश मंडल में बिजली चमकी भगवान भोलेनाथ की माला एक वृक्ष पर टंँगी हुई दिखाई दी नारद जी उस माला को उतारे और शिव जी के पास पहुंँचकर यात्रा में आने वाले सभी विपत्तियों का वर्णन शिवजी को सुनाए।
तब भगवान भोलेनाथ ने कहा यह सब पार्वती की लीला है। वो पार्थिव पूजन की बात आपसे गुप्त रखना चाहती थीं, इसीलिए उन्होंने पहले झूठा बहाना बनाया, फिर उस झूठ को सत्य साबित करने के लिए अपने पति धर्म के बल पर महल का निर्माण किया। इसकी सत्यता को साबित करने हेतु ही मैंने आपको माला लाने के लिए वहांँ पर भेजा ।
तब पार्वती जी बोली मेरी क्या औकात कि मैं यह सब कर सकूंँ ,यह तो आपकी कृपा है। ऐसा जानकर महर्षि नारद जी ने माता पार्वती तथा उनके पतिव्रत धर्म को प्रणाम किया और उन्मुक्त कंठ से उनकी भूरी भूरी प्रशंसा किए।
*अंततः नारद जी ने माता पार्वती तथा शिव जी के पतिव्रत प्रभाव से उत्पन्न घटना को ध्यान में रखते हुए आशीर्वचन स्वरूप कहा कि- “जो भी स्त्रियांँ, कन्याएंँ इस दिन अखंड सौभाग्य हेतु पति के निमित्त इस गुप्त व्रत को गुप्त रूप से करेंगी आप दोनों की उस पर सदा अनुकंपा बनी रहेगी, तथा उनके पति चिरंजीवी होंगे ।इस प्रकार का आशीर्वाद देने के उपरांत नारद जी भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती को प्रणाम कर देवलोक चले गए, और भगवान भोलेनाथ और पार्वती भी हंँसते, मुस्कुराते कैलाश की ओर प्रस्थान कर गए।
माता जानकी ने भी माता पार्वती की पूजा करके ही प्रभु श्री राम को मनवांछित वर के रूप में प्राप्त किया था। चूंँकि माता पार्वती ने इस व्रत को छिपाकर किया था अतः उसी परंपरा का निर्वाह करते हुए आज भी स्त्रियांँ इस व्रत को छुपाकर ही करती हैं पूजन के अवसर पर पुरुष उपस्थित नहीं रहते हैं। 🙏🙏🙏🙏🙏
साधना शाही, वाराणसी
Mohammed urooj khan
15-Apr-2024 11:52 PM
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