विवेक शून्य कार्य का परिणाम (कहानी )प्रतियोगिता हेतु12-Apr-2024
विवेकशून्य कार्य का दुष्परिणाम प्रतियोगिता हेतु
तनु दादी का घर उस गाॅंव का एक संपन्न घर था। पूरे परिवार की सज्जनता गांँव में विख्यात थी ।भगवान की दया से किसी भी चीज़ की कोई कमी नहीं थी। किंतु घर में तनु दादी अपनी बहूओं का जीना दुश्वार करके रखी हुई थीं। ग्रीष्म,शरद पावस कोई भी ऋतु हो या कोई भी महीना हो चार बजा नहीं कि वो अपनी बहूओं को जगाना शुरू कर देतीं। जो बहू एक आवाज़ पर उठ गई उसकी तो ख़ैर है किंतु जो एक आवाज़ पर नहीं उठतीं उसे प्रातःकाल ही भला- बुरा कहना प्रारंभ कर देतीं। बहुएंँ वैसे तो हृष्ट - पुष्टऔर तंदुरुस्त थीं, लेकिन इसके साथ ही साथ वो बहुत बड़ी काहिल भी थीं। बहूओं को इस प्रकार बिना काम-काज के चार बजे ही चिल्लाकर- चिल्लाकर घर सर पर उठा लेना बिल्कुल भी रास नहीं आता था। अत: तनु दादी की तीनों बहुएंँ एक दिन बैठकर विचार करने लगीं कि माॅं का इस प्रकार चिल्लाना बंद करने का क्या उपाय है? तभी उनका ध्यान अपनी सास के अलार्म घड़ी पर गया और उन्हें लगा घर की अलार्म घड़ी ही उनके लिए सबसे बड़ी परेशानी का कारण है । इसी के कारण सासू माॅं चार बजे ही उठकर पूरे घर में हाहाकार मचा देती हैं ,और घर को सर पर उठा लेती हैं । यदि यह घड़ी ही नहीं रहे तो इस समस्या से पूरी तरह निजात मिल जाएगा। अब तीनों बहुएंँ मिलकर उस घड़ी को ठिकाने लगाने का उपाय सोचने लगीं, जो उनके जी का जंजाल बन गई थी। तभी सबसे छोटी बहू बोली को एक उपाय सूझा और वह बोली क्यों न इस घड़ी को ही तोड़कर बाहर फेंक दे ,न रहेगा बाॅंस न बजेगी बाॅंसुरी। इस तरह न घड़ी रहेगी न सासू माॅं चार बजे उठकर सबकी नींद में खलल डालेंगी। छोटी बहू का यह तरीका तीनों बहुओं को बड़ा ही पसंद आया और अब घड़ी को ठिकाने लगाने का मौका ढूढ़ा जाने लगा और एक दिन मौका पाकर छोटी बहू घड़ी को तोड़कर बाहर कूड़ेदान में डाल आइ। अब तीनों बहुएंँ बड़ी ही खुश थीं क्योंकि अब उनके नींद में खलल डालने वाली घड़ी घर में विराजमान नहीं थी। किंतु यह क्या घड़ी को तोड़ना तो उनके लिए और भी महॅंगा पड़ गया। अब तो सासु माॅं आधी रात,दो बजे,तीन बजे जब भी उठ जातीं उसी समय बहूओं को भी जगाना प्रारंभ कर देतीं। अब बहुएंँ सोचने लगीं यह तो और बड़ी मुसीबत हो गई घड़ी के रहने पर कम से कम चार बजे जगाती थीं। किंतु अब तो उठाने का कोई समय ही नहीं है जितने बजे उठ गईं उतनी ही बजे उठाने लग रही हैं। इस प्रकार उक्त विवरण के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुॅंचते हैं कि यदि हम किसी भी कार्य को बिना सोचे समझे भावावेश में करते हैं तो हमें उसका दुष्परिणाम सदैव भुगतना ही पड़ता है। जिस प्रकार तनु दादी से छल- कपट करने के कारण तीनों बहूओं को भुगतना पड़ा।
सीख -यदि हम विवेक शून्य होकर कार्य करते हैं, तो उसका अंज़ाम सदैव बुरा होता है।
Babita patel
16-Apr-2024 06:07 AM
V nice
Reply
Mohammed urooj khan
15-Apr-2024 11:49 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
Reply
Varsha_Upadhyay
12-Apr-2024 06:09 PM
Nice
Reply