Geeta thakur

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बैसाखी का पर्व




बैसाखी का पर्व 
   
🌹🌹🌹 सबको शुभकामनाएं


बैसाखी का त्यौहार भी कृषि पर आधारित है और भी इसकी मान्यताएं अलग-अलग है। सिख धर्म की स्थापना भी हुई उस दिन।
वैशाखी पर्व का नाम बैसाखी कैसे पड़ा इसके पीछे एक मान्यताएं है कि उस दिन आकाश में विशाखा नक्षत्र होता है। विशाखा नक्षत्र पूर्णिमा में होने के कारण इस महीने को बैसाखी कहते हैं। इस दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है इसीलिए इसे मेष संक्रांति ही कहा जाता है।
बैसाखी के दिन किसानों के खेत में फसलें भी पक कर तैयार हो जाती है। फसल काटने की शुरुआत हो जाती है किस खुशी में भी यह पर्व मनाया जाता है।

बैसाखी सिख धर्म का प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह त्यौहार हर साल विक्रम संवत के प्रथम माह में पड़ता है।
अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से इस त्योहार को मनाते हैं।
खासकर नए साल के रूप में मनाया जाता है। बैसाखी का त्यौहार मुख्य का किसानों का पर्व मानते हैं। किसान अपनी पकी हुई फसल को देखकर बहुत खुश होते हैं इसी खुशी को जाहिर करते हैं नाचते गाते हैं भांगड़ा डालते हैं।
फसल के अलावा भी और कई बातें इस प्रकार से जुड़ी हुई हैं।
कहते हैं बैसाखी के दिन सिख समुदाय के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख समुदाय की खालसा पंथ की स्थापना की थी।
13 अप्रैल 1699 को इस पंथ की स्थापना करी थी। गुरु ग्रंथ साहब को अपना मार्गदर्शक बनाया।

ऐतिहासिक महत्व
धार्मिक दृष्टि के अलावा ऐतिहासिक रूप से भी बैसाखी का त्यौहार महत्वपूर्ण है। जैसा कि बताया है गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना करी थी, गुरु गोविंद सिंह जी ने सिख समुदाय को आमंत्रित किया। गुरु का आदेश मिलते ही सभी सिख समुदाय आनंदपुर साहिब के उस बड़े से मैदान में पहुंच गए जहां पर गोविंद सिंह जी ने सभा का आयोजन किया हुआ था।
गोविंद सिंह जी ने अपनी तलवार निकालकर सिख समुदाय को संबोधित किया कि मुझे सिर चाहिए। गुरु की बात सुनते की सभा में सन्नाटा छा गया, तभी एक लाहौर निवासी वहां हाथ जोड़कर बोले मेरा सर हाजिर है। गोविंद सिंह जी उसे तंबू के अंदर ले गए और कुछ देर में तंबू से खून की धारा बहती नजर आई इसके बाद गोविंद सिंह फिर मंच पर आए और उन्होंने पुनः फिर सिर की मांग करी।
इस प्रकार बारी-बारी 5 लोग गुरु गोविंद सिंह जी अंदर ले गए लोगों ने समझा उनके सर कलम कर दिए है , जब छठी बार गुरुजी भाग निकले और उनके साथ में पहने वाले भी पांच व्यक्ति सही सलामत वापस आए। पांचों व्यक्तियों ने कहा कि गुरु जी हमारे परीक्षा ले रहे थे हर बार वह बकरे की बलि दे रहे थे।
इसके बाद गुरूजी ने सिख समुदाय को संबोधित करके कहा कि यह मेरे (पांच प्यारे) हैं। इनकी निष्ठा से एक नए संप्रदाय का जन्म हुआ जो खालसा कहलाएगा। इस तरीके से खालसा पंथ की स्थापना हुई।

सूर्य की स्थिति परिवर्तन के कारण इस दिन के बाद धूप तेज हो जाती है और गर्मी शुरू हो जाती है। गरम किरणों से रवि की फसल पक जाती है। इसीलिए किसानों के लिए यह उत्सव की तरह होता है। मौसम के कुदरती बदलाव के कारण भी यह त्यौहार को मनाया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार बैसाखी के मौके पर लोग गंगा में स्नान करते हैं और दानपुर करते हैं। गंगा देवी की आरती करते हैं। बैसाखी का त्यौहार बेहद शुभ मंगलकारी होता है।
मंदिरों के साथ-साथ गुरुद्वारों में भी बहुत रौनक दिखी को मिलती है।
  गुरुद्वारों में सभी रिश्तेदार आपस में मिलते हैं संघ बैठकर लंगर खाते हैं कड़ा प्रसाद लेते हैं।
बहुत सी महिलाएं घर में तरह-तरह के पकवान भी बनाती हैं।
हिंदी कैलेंडर के अनुसार इस दिन को हमारे सौर नववर्ष की शुरुआत के रूप में माना जाता है।
इस दिन किसान लोग अनाज की पूजा भी करते हैं और बहुत से लोग आज भी घरों में अनाज की पूजा करते हैं। फसल जब कट जाती है तो भगवान और प्रकृति को धन्यवाद करते हैं।
भारतवर्ष में सभी त्योहार हमारे प्रकृति से जुड़े हुए हैं जो हमें सिखाते हैं कि प्रकृति का आदर करें तो वह भी हमें 100 गुना वापस लौटा कर देती हैं।

यह सब भारत देश में ही देखने को मिलता है मेरा भारत देश रंग रंगीला त्योहारों का देश है।

गीता ठाकुर दिल्ली से
प्रतियोगिता हेतु





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3 Comments

Gunjan Kamal

19-Apr-2024 06:30 PM

👌🏻👏🏻

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Babita patel

16-Apr-2024 06:05 AM

Amazing

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Mohammed urooj khan

15-Apr-2024 11:47 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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