नीति-वचन-13
*नीति-वचन*-13
मधुर बोल अरु मधु मुस्काना।
सदा न सज्जन रह पहिचाना।।
तिलक-छाप अरु चंदन माथे।
गर रुद्राच्छ कमंडल हाथे ।।
एकमात्र नहिं संत-निसानी।
कबहुँ-कबहुँ अस दुरगुन-खानी।।
जहँ रह काँट पुष्प तहँ बिगसै।
दुर्दिन गाढ़ तेज-बल बिकसै।।
ईस्वर-सत्ता कन-कन माहीं।
जे अस जानै संत कहाहीं।।
धन-घमंड, ग्यान-अभिमाना।
जानै नहिं महिमा भगवाना।।
कपट-कुटिलता असुर-सुभावा।
कबहुँ न समुझहि प्रभू-प्रभावा।।
बालक-सरल-अबोध प्रबृत्ती।
कहहिं संत अस प्रभु कै बृत्ती।।
श्रुतिहिं-पुरान-बेद अस कहहीं।
बाल-सुभाउ सरल प्रभु रहहीं।।
बिनु छल-कपट-दंभ-अभिमाना।
बाल-सुभाउ बास भगवाना।।
बालक मानुष-जनक कहावै।
बाल-काल प्रभु-भाव लखावै।।
जस-जस प्रौढ़ होय तन मानुष।
वस-वस बढ़इ प्रबृत्ति अमानुष।।
समुझइ नहिं निज मूल स्वरूपा।
माया बसीभूत लोलूपा।।
होय भ्रमित भटकै चहुँओरा।
माया-भ्रम नहिं ओरा-छोरा।।
इत-उत खोजै सुख नहिं पावै।
मृग-मरीचिका जस मृग धावै।।
दोहा-भ्रमित करै माया सबहिं,जदि नर नहीं सचेत।
ब्यर्थ जागरन होय जब,चिरई चुग गइ खेत।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372
Mohammed urooj khan
23-Apr-2024 04:17 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Arti khamborkar
22-Apr-2024 03:39 PM
Amazing
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