मुसाफ़िर (नज़्म) प्रतियोगिता हेतु-25-Apr-2024
मुसाफ़िर (नज़्म ) प्रतियोगिता हेतु
मैं ऐसी मुसाफ़िर हूंँ कभी जो थक नहीं सकती, गंतव्य मिल नहीं जाता तब तक भक नहीं सकती। चलना काम है मेरा, रूकना शौक ना पाली, मुकम्मल करने को सपने मैं हूंँ यक सदा चलती। पथ में शूल बिखरे हों उनका फिक्र ना मुझको, एक दिन फूल कर दूंँगी इसी का छक हूंँ मैं करती। कोई राह रोके तो नया में ढूंँढ़ लेती हूंँ, मुसाफ़िर हूंँ मैं ऐसी की ख़ुशी से रक सदा करती। उमंगें और आत्मादृढ़ ये मेरे दो साथी हैं, इन्हीं का साथ पाकर मैं मुखड़ा फक नहीं करती। आए जब घटा काली ख़ुशी से झूम जाती हूंँ, वो अपना काम करती है कभी ना धक मुझे करती। उड़ने को हूंँ मैं अकुल आकुलता शांत भी होगी, मैं ऐसी मुसाफ़िर हूँ धरा से नक तलक चलती।
साधना शाही, वाराणसी
Mohammed urooj khan
27-Apr-2024 11:54 AM
👌🏾👌🏾
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राजीव भारती
26-Apr-2024 04:17 PM
जी बेहतरीन प्रस्तुति।
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Varsha_Upadhyay
25-Apr-2024 11:12 PM
Nice
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