Sadhana Shahi

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चिंतन करत मन भाग्य का है (भजन) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु26-Apr-2024

चिंतन करत मन भाग्य का है (भजन ) स्वैच्छिक प्रतियोगिता हेतु

मन चिंतन करता रे दिन- रात अपने भाग्य का, मन चिंतन करता रे।

चिंतन करते-करते यह तो मांँ के दर पर आया, खाली झोली भर गया उसका जी था बड़ा हर्षाया, उसका भाग जागा रे मैया का चिंतन करके उसका भाग जागा रे। मन चिंतन करता रे दिन- रात अपने भाग्य का, मन चिंतन करता रे।

अंधा, लंगड़ा, लूला, जड़ जो भी झोली फैलाया, सबकी मनसा पूरी हो गई कोई खाली हाथ न आया, जय- जयकारा किया रे, मैया के प्रताप का जय- जयकारा किया रे। मन चिंतन करता रे दिन- रात अपने भाग्य का, मन चिंतन करता रे।

आंँख, पांँव कर और विद्या के माँ देती हैं ख़ज़ाने, ऊंँच- नीच धन- निर्धन का, कभी भेद नहीं माँ माने, तेरी करुणा की खातिर बलिहारी जाऊंँ रे। मन चिंतन करता रे दिन- रात अपने भाग्य का, मन चिंतन करता रे।

वैशाख माह अति पावन बेला मंगलमय है होता, कलमष्ता जो भक्तों में है तुरंत ही उसको धोता, देवी- दुर्गा और प्रभु के भजन चहुँ है होता, तेरे दरस की मैं भी प्यासी टेर लगाऊंँ रे, मन चिंतन करता रे दिन- रात अपने भाग्य का, मन चिंतन करता रे।

साधना शाही, वाराणसी

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