Sadhana Shahi

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परमात्मा की ख़ोज (कहानी) प्रतियोगिता हेतु26-Apr-2024

परमात्मा की ख़ोज (कहानी) प्रदत्त प्रतियोगिता हेतु

मध्य प्रदेश के एक निजी विद्यालय में रोहन नाम का बच्चा अध्ययनरत था। बचपन में ही उसके पिता की मृत्यु हो चुकी थी उसके परिवार में सिर्फ़ वह और उसकी माँ थे।

उसकी मांँ घरों में आया का काम करती थी और चाहती थी कि उसका बेटा पढ़- लिखकर एक बहुत बड़ा और नेक दिल इंसान बने। किंतु बच्चा चाहकर भी पढ़ाई में अपना स्तर सुधार नहीं पा रहा था। एक दिन उसके प्रधानाचार्य ने उसे अपने कार्यालय में बुलाया और उसे एक चिट्ठी पकड़ाते हुए कहा, इस चिट्ठी को तुम नहीं खोलना इसे ले जाकर अपनी मांँ को दे देना। बच्चा बड़ा ही आज्ञाकारी था उसने चिट्ठी को खोला नहीं और लाकर अपनी मांँ को चिट्ठी दे दिया ।

मांँ ने चिट्ठी खोला और पढ़ा। रोहन यह जानने के लिए व्याकुल था कि आख़िर चिट्ठी में क्या लिखा हुआ है। उसने अपनी मांँ से पूछा मांँ इस चिट्ठी में क्या लिखा हुआ है? तब माँ ने उससे कहा- बेटा इस चिट्ठी में लिखा हुआ है कि आपका बेटा बहुत होशियार है, वह इतना होशियार है कि हमारा विद्यालय उसे पढ़ाने में सक्षम नहीं है, अतः आप इसे किसी बहुत अच्छे विद्यालय में डाल दीजिए।

रोहन अपने बारे में मांँ के मुंँह से इस तरह की बात को सुनकर बड़ा ही ख़ुश हुआ। अगले ही दिन उसकी मांँ अकेले विद्यालय गई उसका टी.सी.लेकर के आई और उसे दूसरे विद्यालय में डाल दी।

रोहन की मांँ आया का काम करते हुए भी अपने बच्चे का पूरा ख़्याल रखती। जब भी वक्त मिलता उसके साथ बैठकर बातें करती, स्कूल में क्या पढ़ाया गया, रोहन ने कितने उत्तर दिए, टीचर ने उससे क्या बोला, इस तरह की बातें उससे सदैव करती।

अपनी मांँ के हौसला अफजाई की वज़ह से वही मंदबुद्धि रोहन जिसे उसके पिछले विद्यालय से निकाल दिया गया था उस स्कूल का टॉपर बना और वह यूपीएससी की परीक्षा पास करके एक सफ़ल, सच्चा ,सुलझा हुआ भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी बना।

समय आगे बढ़ता रहा रोहन अपने सभी कार्यों को बड़े ही मेहनत और ईमानदारी से करते हुए ख़्याति को अर्जित कर रहा था वहीं दूसरी तरफ़ उसकी मांँ वृद्धावस्था की तरफ़ अग्रसर हो रही थी। एक दिन अचानक उसकी मां के पेट में दर्द उठा रोहन ऑफिस से भागता हुआ घर आया लेकिन थोड़ी ही देर में उसकी मांँ स्वर्ग सिधार गईं।

मांँ के मरने के पश्चात रोहन एक दिन अपनी मांँ के सामानों को व्यवस्थित कर रहा था तभी उसकी नज़र उस चिट्ठी पर पड़ी जो उसके पिछले विद्यालय के प्रधानाचार्य ने दिया था। रोहन ने जब चिट्ठी खोलकर पढ़ा तो वह दंग रह गया। माँ ने तो कहा था चिट्ठी में लिखा है रोहन बहुत होशियार है लेकिन इसमें तो लिखा हुआ है आपका बेटा जड़ बुद्धि है, यह पढ़ाई में बहुत ही कमज़ोर है, और ऐसे जड़ बुद्धि बच्चे को हम अपने विद्यालय में नहीं रख सकते, इसलिए आप अपने बच्चे को हमारे विद्यालय से निकाल लिजिए।

रोहन चिट्ठी को पढ़े जा रहा था और उसकी आंँखों से आंँसुओं का सैलाब बहे जा रहा था। वह सोच रहा था मैंने साक्षात ईश्वर को खो़ज लिया है मेरी मांँ कोई और नहीं वह साक्षात ईश्वर थी जिसने मुझ जैसे जड़ को आज एक प्रशासनिक अधिकारी बना दिया। आज मेरी मांँ भले ही दुनिया में नहीं है लेकिन उसकी वज़ह से ही मैं भारतीय प्रशासनिक सेवा अधिकारी बना और प्रशासनिक अधिकारी बनकर देश और समाज की सेवा कर पा रहा हूंँ और इस तरह से उस ईश्वर का अंश मुझ में भी विद्यमान है।

उसके मुंँह से अनायास ही निकल पड़ा यदि हम वास्तव में ईश्वर की ख़ोज करना चाहते हैं तो हमें दर-दर भटकने की आवश्यकता नहीं है वरन् मां के रूप में ईश्वर हमारे साथ सदैव विद्यमान हैं हमें सिर्फ़ महसूसने की आवश्यकता है।

सही कहा जाता है ईश्वर किसी मंदिर, मस्जिद ,चर्च ,गुरुद्वारे में नहीं मिलते हैं बल्कि ईश्वर तो हमारे ही इर्द-गिर्द निवास करते हैं। हमें उन्हें सच्चे मन से खोजने की आवश्यकता होती है।जैसे रोहन ने अपने मांँ के रूप में पा लिया।

साधना शाही, वाराणसी_

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2 Comments

Babita patel

28-Apr-2024 10:57 AM

Amazing story mam

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Mohammed urooj khan

27-Apr-2024 12:10 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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