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नीति-वचन-15

*नीति-वचन*-15
जे घर नारी नहिं सम्माना।
जानउ ऊ घर नरक समाना।।
    बसहिं देव जहँ पूजन नारी।
     कहहिं सास्त्र अस सोचि-बिचारी।
पापी कुल ऊ अधम समाजा।
जे रच्छहिं नहिं नारी-लाजा।।
     नारी ममता,माता-मूरति।
     कबहुँ न बिसरै माँ कै सूरति।।
माँ कै अँचरा स्वर्ग समाना।
मातु असीष असिष भगवाना।।
    माता प्रथम सिसू-पठसाला।।
जननि रचै सिसु-चरित निराला।।
दुर्जोधन कीन्हा अपमाना।
दुर्गति भई तासु जग जाना।।
     सीता-हरन कीन्ह जब रावन।
      लंका जरी मरा कुल-लावन।।
जानउ नहिं नारी अब अबला।
परम प्रबीना नारी सबला ।।
    सिच्छा-समर-ग्यान-बिग्याना।
     निपुना-कुसला त्रिय-पहिचाना।।
नहिं अब अंतर नर-अरु नारी।
दुइनउँ सम-समान अधिकारी।।
    गगन-मार्ग नभयान उड़ावहिं।
     रिपुन्ह समर महँ धूरि चटावहिं।।
दोहा-अहहिं नारि अब दच्छ बहु,रखहु तिनहिं कै मान।
         नाहिं त तोरिहैं ई सभें,सकल पुरुष-अभिमान।।
                     डॉ0हरि नाथ मिश्र
                       9919446372

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4 Comments

Gunjan Kamal

30-Apr-2024 08:20 AM

बहुत खूब

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Mohammed urooj khan

29-Apr-2024 01:28 PM

👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾

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Varsha_Upadhyay

27-Apr-2024 10:52 PM

Nice

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