30 अप्रैल, ईमानदारी दिवस ( कहानी)-30-Apr-2024
30 अप्रैल ईमानदारी दिवस
अप्रैल माह का प्रारंभ होता नहीं है कि चारो तरफ़ मूर्ख दिवस का बोलबाला हो जाता है। ऐसे में मूर्ख दिवस के रूप में मनाए जाने वाले झूठ को संतुलित करने के लिए एक रणनीति तैयार की गई। जिसके फलस्वरूप हर साल 30 अप्रैल को राष्ट्रीय ईमानदारी दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह दिन 1990 के दशक की शुरुआत में 'द बुक ऑफ लाइज' के लेखक एम. हिर्श गोल्डबर्ग द्वारा बनाया गया था। जिसका उद्देश्य व्यवसायिक, राजनीतिक, पारिवारिक, शैक्षिक प्रत्येक स्तर पर ईमानदारी का प्रचार- प्रसार करना है। 30 अप्रैल को, गोल्डबर्ग खुद सम्मानित कंपनियों, संगठनों, समूहों और व्यक्तियों को ईमानदारी का पुरस्कार प्रदान करते हैं। ईमानदारी दिवस के इसी शृंखला में प्रस्तुत है आज की मेरी कहानी- ईमानदार छात्रा
मीना गणित की परीक्षा के दिन अचानक बीमार पड़ गई थी, जिस कारण उसकी गणित की परीक्षा छूट गई थी। सारी परीक्षाएंँ समाप्त होने के पश्चात मीना अकेले गणित की परीक्षा लाइब्रेरी में बैठकर दे रही थी। मीना के पास ही उसका पूरा बस्ता रखा हुआ था जिसमें उसकी गणित की किताबें और अभ्यास-पुस्तिका भी थी। मीना को 5 सवालों में से 2 सवाल नहीं आ रहे थे, मीना चाहती तो अपने बैग से गणित की अभ्यास- पुस्तिका निकालकर सवाल कर सकती थी। लेकिन मीना ने ऐसा नहीं किया और दो प्रश्न उसके छूटे हुए थे। तभी विषय अध्यापक आए और उन्होंने मीना से पूछा- तुमने पूरे सवाल कर लिए? मीना ने कहा-नहीं गुरु जी दो सवाल नहीं बन रहे हैं ।तभी गुरु जी की नज़र मीना के बगल में पड़े बस्ते पर गई और उन्होंने मीना को डाॅंटते हुए कहा, यह क्या! तुम पूरा बस्ता लेकर परीक्षा देने बैठी हो? मीना ने डरते , सहमते हुए कहा, गुरु जी मैं दूर करना भूल गई थी। फिर गुरुजी ने बस्ते को दूर किया और मीना का प्रश्न पत्र, और अभ्यास पुस्तिका लेकर देखे उसने 2 सवाल नहीं किया था। गुरुजी ने मीना से पूछा, तुम्हारे पास तो तुम्हारी गणित की अभ्यास पुस्तिका और किताबें थीं इसमें तुमने इस सवाल को हल भी किया हुआ है ,जो परीक्षा के प्रश्न पत्र में छोड़ी हो, फिर भी तुमने देखकर क्यों नहीं किया? तुम्हें तो कोई यहाॅं देखने के लिए बैठा भी नहीं था। तब मीना ने गुरु जी से कहा- मुझे कोई भले ही नहीं देख रहा था,लेकिन मैं स्वयं को देख रही थी और मैं खुद को एक चीटर , एक नकलची बनते हुए नहीं देख सकती थी। भले ही मेरे अंक कुछ कम ही क्यों ना आ जाएंँ। मैं अगली बार फिर से मेहनत करूॅंगी और अच्छे अंक ला लूॅंगी किंतु एक बार मैं खुद को नकलची बनते हुए देख लूॅंगी तो फिर दोबारा उस दृश्य को मिटा नहीं पाऊंँगी। मीना की इस तरह की बात को सुनकर गुरु जी बड़े प्रसन्न हुए और वो प्रश्न-पत्र के साथ उसे प्रधानाचार्य के पास उनके कार्यालय में ले गए और ले जाकर उन्होंने सारी बात बताया ,जिससे प्रधानाचार्य भी बड़े ही प्रसन्न हुए और अगले दिन प्रातः कालीन सभा में उसे मंच पर बुलाकर बच्चों के सामने तालियों से उसका स्वागत किया गया और उसे उसकी इमानदारी के लिए पुरस्कार दिया गया। समाचार- पत्र में भी उसका फ़ोटो उसके ईमानदारी के कारनामे के साथ छपा जिससे आस-पड़ोस के लोग भी मीना की इमानदारी से रूबरू हुए। प्रधानाचार्य तथा पूरा विद्यालय परिवार मीना के इस प्रकार की ईमानदारी से बड़े ही प्रसन्न हुए। प्रधानाचार्य ने मीना को समझाते हुए कहा, बेटा तुम्हें एक बात और जान लेना चाहिए कि हमें हमारे अलावा कोई और देखे न देखे लेकिन ईश्वर हमें प्रतिक्षण देखते रहते हैं और वो हमारे अच्छे और बुरे कर्मों का परिणाम अवश्य देते हैं। हम सबकी नज़र से बच सकते हैं किंतु ईश्वर की नज़र से कभी नहीं बच सकते। इसलिए हमें किसी भी ग़लत कार्य को करने से पूर्व एक बार यह ज़रूर सोच लेना चाहिए कि हमारे इस काम को कोई और भले न देख रहा हो लेकिन जगत नियंता इसे देख रहे हैं। आज नहीं तो कल वो इसका हिसाब हमारे साथ अवश्य करेंगें।
साधना शाही,वाराणसी
Mohammed urooj khan
03-May-2024 01:19 PM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Babita patel
01-May-2024 07:24 AM
V nice
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Gunjan Kamal
01-May-2024 12:29 AM
👏🏻👌🏻
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