22 अप्रैल, पृथ्वी दिवस पर कविता01-May-2024
22 अप्रैल पृथ्वी दिवस
पूरे वर्ष हम तान के सोते , अप्रैल 22को जग जाते हैं । उस दिन हम धरती माता को स्वर्ग- सा स्वच्छ बनाते हैं।
कार्यालय,विद्यालय और विश्वविद्यालय में , इस दिन उत्सव सा होता है। अगले दिन हर गली, चौराहे, पर फेंका दोना,पत्ता है।
पूरा विश्व आज के दिन है, पृथ्वी दिवस मनाता। कल के दिन फिर धरती माँ को, छति जन-जन पहुंँचाता।
बड़े-बड़े हम वादे करते , एक न पूरा करते। क्षय पहुॅंचाने में धरती को, ना थोड़ा भी डरते।
जन-जन को हम जागरूक करते, खुद ही धरा बेआबरू करते। काटें वृक्ष लगाएँ ना कभी, ना कल की हम चिंता करते।
चलो बढ़ाएंँ प्राकृतिक आवास, धरती की रक्षा करें खास। संयुक्त राज्य अमेरिका शुरू किया था, सकल जगत में फैले उजास।
अग्रसर हुए एक सौ तिरानबे देश, समर्पित होकर दिवस मनाएँ। आरंभ हुआ उन्नीस सौ सत्तर में, इसको फिर कभी भूल न पाएँ।
धरा को ना गंदा होने दें, ना इसको हम क्षति पहुॅंचाएंँ। ऐसा करना ठान यदि लें, तब ही पृथ्वी दिवस मनाएंँ।
प्रकृति यदि नुकसान करे तो, भरपाई हम मानव कर लें। उस छति को कभी बढ़ने ना दें। आओ ख़ुद से वादा कर लें।
ग्लोबल वार्मिंग पर चर्चा कर लें, दुष्प्रभाव ना इसका वर लें। हर वर्ष चलो एक वृक्ष लगाएंँ, हरा- हरा सोना ऊपजाएँ।
60 मिनट तक बंदहो कृत्रिम प्रकाश, जानो इसको काज बड़ा खास। पड़ेगा इसका महती प्रभाव, सुधरे कस्बा ,शहर और गाॅंव।
दूर भगे नकारात्मक प्रभाव, मोटापा ,मधुमेह व घाव। मस्तिष्क मेलाटोनिन ना बिगड़े, कृत्रिम प्रकाश से कर लें झगड़े।
आकाशगंगा मेहराब को देखें, तारों को लें जी से निहार। कृत्रिम प्रकाश से तोड़ लें रिश्ता, नैसर्गिक पर हों बलिहार।
वन की कटाई रोक लगाएंँ, संतति सा उसे गले लगाएंँ। सर-सरिता भी साफ़ करें हम, फिर ना होवे किसी को भी गम।
साधना शाही,वाराणसी
Babita patel
02-May-2024 07:28 AM
Amazing
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