मजदूर
मजदूरों का जीवन सादा।
परिश्रम करते सबसे ज्यादा।।
काम कोई बड़ा ना छोटा।
इज्जत सबमें कोई न खोटा।।
काम सभी को रोटी देता।
काम सभी को जीवन देता।।
एक मजदूर चार बच्चे थे।
चारों ही छोटे बच्चे थे।।
पति-पत्नी करते मजदूरी।
बच्चे खेलते रहते पौरी।।
सब खुश रहते खाते-पीते।
आपस में मिल काम कराते।
जीवन से शिकवा कब कोई।
कब मुकदमा कचहरी कोई।।
बराबर दोनों कमाते हैं।
आपस में मिल कर खाते हैं।।
पैसे का भी रौब नहीं है।
इक-दूजे की दाब नहीं है।।
मदद सरकार की मिलती है।
खूब अच्छी नैया चलती है।।
सब आफत ने घेर लिया है।
बीमारी ने जकड़ लिया है।।
काम बन्द हो गया है सारा।
कैसे कोई करे गुजारा।।
गेंहूं-चावल सब मिल जाते।
सब्जी मिर्च कहाँ से आते।।
भाड़ा कमरे का देना है।
बकाया माह का देना है।।
लड़की बारह साल हुई है।
कपड़े कब हैं शाॅल फटी है।
बदन पत्नी का है अधनंगा।
कहाँ से लाऊँ मैं तिरंगा।।
हाट बन्द पैसे भी नहीं है।
जमाखोर हम बिल्कुल नहीं है।।
कोरोना जाने कब जाए।
कैसे कोई काम चलाए।।
मदद सियासी मिल कब पाए।
लेने में कोई सकुचाए।।
मजदूरों की यही कहानी।
दिल में दर्द आँख"श्री"पानी।।
स्वरचित - सरिता श्रीवास्तव "श्री"
धौलपुर (राजस्थान)
Sarita Shrivastava "Shri"
01-May-2024 11:57 PM
👌👌
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