नीति-वचन-19
*नीति-वचन*-19
भगत-छेमु-कारजु भगवाना।
जग मा आवैं कहहिं पुराना।।
साँचा सुख संतोष,समर्पन।
कबहुँ न सेवा, बिनु स्व-अर्पन।।
कथनी-करनी एक समाना।
इहवयि दर्सन कहैं पुराना।।
तुरत करउ जे कारज सुभकर।
करउ बिलंब अहहिं जे बदतर।।
लोभहिं तें बड़ नहिं अरु दोषा।
अहहिं बड़ा गुन दान व तोषा।
भक्ति-भावना मात्र न भावा।
साँची भक्ती करम-प्रभावा।।
जइसइ रहै बासना-बासा।
मिलै जनम वस जोनि उलासा।।
करहिं जे प्रेम प्रभुहिं जन गाढ़ा।
प्रभू-प्रेम रह अस जन बाढ़ा।।
कर्म औरु नहिं धर्महिं अंतर।
अस कह गीता-ग्यान निरंतर।।
जीवन-मूल्य औरु संस्कारा।
रहहिं सदा रच्छक संसारा।।
धरमाभाव अधर्महिं राजा।
बढ़ै जगत मा असुर-समाजा।।
अहहि जगत परिवर्तनसीला।
पर नहिं नियम प्रकृति गतिसीला।।
दोहा-जग-जीवन बदलहिं सदा,प्रकृति-धर्म रह एक।
प्रभु-सत्ता बस एक अह,जदपि कि रूप अनेक।।
डॉ0हरि नाथ मिश्र
9919446372