परिवार
प्रतियोगिता के लिए
परिवार
प्रेम और विश्वास से ,चले धुरी परिवार।
साथ सभी का जो मिले, सबके मिलें विचार।
बड़ों का हो मान, सदा, छोटा पाए नेह।
उत्तम वह परिवार है , छलके है अति स्नेह।
कमी तो थोड़ी बहुत, हर मानव में होय।
कमियों को बिसार दे, बढ़े परिवार सोय।
सुमति जिस परिवार में , आगे बढ़ता जाय।
कुमति बैठ गई जहाँ, ख़ुशियाँ सबकी खाय।
वर्तमान परिवेश में , बिखर रहा परिवार।
सभी मूल्य हैं गिर रहे, टूट रहा आधार।
ज्यादा धन की चाह में, छोड़ रहे परिवार।
एकांकी जीवन जी रहे, मुश्किल समय गुजार।
छोड़ गाँव आये शहर, चकाचौंध भरमाय।
देर बहुत है हो गई, खुली आँख पछताय।
अनाज उगता खेत जो, बिके शहर में मोल।
साग पात के दाम सुन, मन जाता है डोल।
मेहनत करिये जी तोड़ कर, अच्छी फसल उगाय।
घी दूध की नदी बहे, रहे परिवार अघाय।
स्नेहलता पाण्डेय 'स्नेह'
Zakirhusain Abbas Chougule
26-Oct-2021 07:35 PM
Nice
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Renu Singh"Radhe "
26-Oct-2021 02:42 PM
बहुत सुंदर रचना
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ऋषभ दिव्येन्द्र
26-Oct-2021 01:54 PM
वाह....वाह....वाह👌👌👌👌 बहुत ही सुन्दर दोहे ❤️❤️🙏🙏
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