एक वायदे के खातिर (कहानी) प्रतियोगिता हेतु-10-May-2024
10,05,2024 एक वायदे की खातिर (कहानी) प्रतियोगिता हेतु
तीज का दिन था शाम को सभी विवाहित महिलाएंँ सोलह ऋंगार करके समिति के पास वाले मंदिर में पूजा अर्चना कर रही थीं। तभी रैना भी सोलह श्रृंगार करके हाथ में पूजा की थाली लिए मंदिर में जैसे ही प्रवेश की सभी महिलाओं की प्रश्नवाचक नज़रें उसे घूर-घूर कर देखने लगीं।सबकी नज़रें उससे सवाल करतीं यह विधवा किसके लिए इतना श्रृंगार की हुई है? जरूर इसका कहीं न कहीं अफेयर है। इसके पति को मरे तो पाँच साल हो गए फिर यह कैसे इतना श्रृंगार की हुई है। इस तरह की प्रश्नवाचक नजरें उसको घूरकर उसके अंतर्मन को लहूलुहान कर रही थीं।
किंतु रैना बिना किसी को ज़वाब दिये मंदिर के अंदर गई, भगवान की पूजा-अर्चना की, प्रणाम की और जिस तरह से सिर झुकाकर मंदिर में गई थी उसी तरह से सिर झुकाए वह मंदिर से बाहर आकर अपने घर आ गई ।
अपने घर आकर वह हाथ में कुछ पकड़कर(रमन की फोटो) फूट-फूट कर रोने लगी। उसी समय उसकी 7 साल की बेटी सुरभी उसके पास आई और उसे इस तरह रोते हुए देखकर रोने का कारण पूछने लगी। तब उसने अपनी बेटी को गले लगाकर कहा बेटा मैं मंदिर गई थी पैर स्लिप कर गया और गिर गई, चोट लग गई है। चूँकि सुरभी अभी बहुत छोटी थी इसलिए वह माँ के झूठ को पकड़ नहीं पाई और उसे यही लगा कि हांँ मम्मी गिरकर चोट लगने की वज़ह से ही रो रही हैं। साल 2 साल और आगे बढ़े समय के साथ-साथ सरभी बड़ी हुई वह बाहर बच्चों के साथ खेलने जाने लगी, तभी कुछ बच्चे सुरभी को ताना मारते हुए बोले, तेरी मम्मी तो विधवा हो करके के भी सजती-संँवरती हैं, जबकि विधवा लोग नहीं सजती हैं। तेरी मम्मी तो अच्छी नहीं है। बच्चों की यह बातें सुरभी के कोमल मन पर अमिट छाप छोड़ दीं।
सुरभी रोते हुए अपनी मम्मी के पास आई और वह पूछने लगी मम्मी क्या तुम विधवा हो? सुरभी के मुंँह से ऐसी बात सुनकर रैना काँप उठी। रैना के इस प्रकार चुप्पी साधने पर सुरभी पुनः रैना को कुछ झिंझोटते हुए और कुछ चिल्लाते हुए सी बोली, आप बताइए क्या आप विधवा हैं।
रैना कुछ भी बोल सकने में सक्षम नहीं थी। सुरभी की बात सुनकर रैना लगभग मुजरिम की तरह खड़ी हो गई। सुरभी फ़िर चिल्लाते हुए बोली मम्मी मैं आपसे पूछ रही हूंँ क्या आप विधवा हैं?
सुरभी के इस प्रकार चिल्लाते हुए पूछने पर ,रैना भी चिल्लाते हुए बोली हांँ- हां मैं विधवा हूंँ। 5 साल से विधवा हूँ बोलो क्या करना है? क्या सजा देना है तुम्हें मुझे ?
तब सुरभी ने कहा, अगर आप विधवा हैं तो फिर क्यों सजती संँवरती क्यों हैं ? मुझे आपने आज तक बताया क्यों नहीं?
तब रैना ने कहा 'एक वायदे के खातिर'। सुरभी ने पूछा कैसा वायदा ? तब रैना में रोते हुए कहा, जब तुम्हारे पिताजी जीवन की अंतिम सांँसें से ले रहे थे तब उन्होंने मुझसे तुम्हें सदैव खुश रखने का तथा मैं कभी विधवा के भेष में नहीं रहूंँगी का वायदा लिया था। उन्होंने कहा था तुम मेरी बेटी को नहीं बताओगी कि उसके पिता दुनिया में नहीं हैं। तुम उसे यही बताओगी उसके पिताजी ज़िंदा हैं वो बहुत दूर नौकरी करने के लिए गए हैं। जब वह पढ़- लिखकर बड़ी आदमी बन जाएगी तब वो लौटकर आएंँगे। उसी वायदे को निभाने के लिए ही मैं सजती-संँवरती हूंँ और मैंने कभी भी तुम्हारे पापा के बारे में तुम्हें नहीं बताया। रैना की बातों को सुनकर सुरभी अपनी मांँ के गले लग गई।उसने कहा मांँ तुम मेरी खुशी के लिए दुनिया वालों के ताने से सुनती रही,तुम एक वायदे को निभाने के लिए इतना कष्ट सहती रही। तुम महान हो वह तुरंत श्रृंगार दानी लाई और अपने हाथों से अपनी मांँ को सजाने लगी और उस दिन सुरभी ने भी अपनी मांँ से एक वायदा दिया कि मांँ आप आजीवन इसी प्रकार सज- सँवरकर हंँसते- मुस्कुराते, खिलखिलाते हुए रहेंगी। आप कभी भी उदास नहीं होंगी। आप कभी भी विधवा के वेष में आएंँगी? क्योंकि मेरे पापा आपको जिस रूप में देखना चाहते थे मैं भी आपको उसी रूप में देखना चाहूंँगी। आप मुझसे भी एक वायदा करिए कि आप हमारे और पापा के वायदे को निभाते हुए हमेशा ख़ुश रहेंगी और जैसे आप रहती हैं वैसे ही रहेंगी। दुनिया वालों का क्या है उनका तो काम है कहना, लेकिन आप दुनिया वालों की परिवाह न कर हम दोनों के वायदे के अनुसार अपने आप को हमेशा ख़ुश रखने का प्रयास करेंगी।
इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमारा भारतीय समाज जिस स्त्री के पति दिवंगत हो जाते हैं उसके जीवन से हर खुशियों को छीन लेना चाहता है। जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए एक स्त्री का अपना भी अपना जीवन है क्या पति के चले जाने के बाद उसका जीवन समाप्त हो जाता है? यदि हांँ तो ऐसी स्थिति में पत्नी के चले जाने के बाद पति का भी जीवन समाप्त हो जाना चाहिए। किंतु ऐसा नहीं होता है तो यदि पत्नी के जाने के बाद पति अपने जीवन को सामान्य कर सकता है तो पत्नी को भी अपने जीवन को सामान्य कर लेना चाहिए। क्योंकि उसके अंदर भी आत्मा होती है और किसी की आत्मा को दुखाने से बड़ा कोई पाप नहीं होता।
साधना शाही, वाराणसी
kashish
13-May-2024 12:14 PM
Amazing
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